उपदेश अवस्थी। मध्यप्रदेश की राजनीति अक्सर जातिवाद की परिक्रमा कर ही लेती है। पिछली दफा दिग्विजय सिंह ने की थी। इस दफा शिवराज सिंह ने कर ली। दोनों में एक बड़ा अंतर है। दिग्विजय सिंह ने कदम बढ़ाने के बाद यू-टर्न नहीं लिया था। शिवराज सिंह इसमें माहिर हैं। उन्होंने ले लिया। जातियों को साधने के लिए 'माई का लाल' जैसा भड़काऊ बयान देने वाले शिवराज सिंह पहले तो सर्वजन हिताय की बात करते नजर आए और इससे भी जब बात नहीं बनी तो 20 सितम्बर 2018 को वह एतिहासिक बयान दे दिया जिसका इंतजार था। चौंकाने वाली बात तो यह है कि इससे ठीक 4 दिन पहले शिवराज की पुलिस ने लाठियां भांजना शुरू कर दिया था। सवर्ण आंदोलन को डंडे के दम पर दबाने की कोशिश शुरू हो गई थी, फिर ऐसा क्या हुआ जो शिवराज सिंह का हृदय परिवर्तित हो गया।
ऐजेंडा क्या है शिवराज सिंह का
अब सवाल बड़ा है और हर चौराहे पर खड़ा है। क्यों शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए जातिवाद को बढ़ावा दिया। उन्होंने ना केवल 'माई का लाल' बयान दिया बल्कि जो याचिका अजाक्स को लगानी चाहिए थी उसे सरकारी खर्चे पर सरकार की तरफ से लगाया। क्या सचमुच शिवराज सिंह यह समझ नहीं पाए थे कि अनारक्षित जातियों के दिल में क्या चल रहा है और अब जबकि पता चला तो उनका हृदय परिवर्तित हो गया या फिर इस बयान के पीछे भी उनका कोई ऐजेंडा है जो न्याय और अन्याय के इतर कुछ और है।
बुधनी वाला शिवराज ऐसा तो नहीं था
कुछ पुराने लोग जो अब शिवराज सिंह का फोटो देखना भी पसंद नहीं करते, दुखी होते हुए सुनाते हैं कि बुधनी वाला वो लड़का जिसे हम शिवराज सिंह चौहान कहा करते थे, ऐसा तो कतई नहीं था। उसे हृदय में छल, कपट नहीं था और जातिवाद तो कतई नहीं था। बुधनी हो या विदिशा, सभी जातियों के लोगों ने उसे प्यार किया और उस ऊंचाई तक पहुंचाया जहां से वो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक चढ़ सका। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह पार्ट 1 और पार्ट 2 भी कल्याणकारी नजर आता था परंतु पार्ट 3 में....।
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