भोपाल। विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की अदालत में दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच दिग्विजय सिंह के बयान दर्ज किए गए। इस दरम्यान सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा ने कोर्ट से बयान दर्ज करने का निवेदन किया। कुछ देर कोर्ट ने उनसे कानूनी पहलुओं पर प्रश्न किए। जिस समय दिग्विजय सिंह विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की जी-11 रूम में बयान देने पहुंचे उसी समय व्यापमं मामले का मुख्य आरोपित नितिन मोहिन्द्रा भी व्यापमं विशेष न्यायाधीश बीएल साहू की जी-7 रूम के सामने बेंच में बैठकर सारी कार्रवाई पर नजर रखे हुए था। हालांकि, मोहिन्द्रा की व्यापमं विशेष न्यायाधीश बीएल साहू की कोर्ट में किसी भी मामले में पेशी नहीं थी।
व्यापमं मामले में आरोपी नितिन मोहिन्द्रा से जब्त कम्प्यूटर हार्ड डिस्क की एक्सल शीट से 18 जुलाई 2013 की शाम 4.20 बजे रात 8 बजे के बीच टेंपरिंग कर सीएम का शब्द हटाया गया था। इस संबंध में बैंगलोर की ट्रूथ लैब में उल्लेख किया गया है। यह बात कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने व्यापमं मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, केंद्रीय मंत्री उमाभारती सहित 8 लोगों आरोपित बनाए जाने के लिए लगाई याचिका के पंजीयन पूर्व बयानों में कही है।
पूर्ण संतुष्टि के बाद सिंह के बयान दर्ज किए जाने के निर्देश दिए। कोर्ट में जब दिग्विजय सिंह के बयान दर्ज किए जा रहे थे, उस समय वहां कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ, केके मिश्रा सहित अन्य नेता उपस्थित थे। अपने बयानों में पूर्व सीएम सिंह ने आरोप लगाया कि व्यापमं घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है, जो निरंतर 7 साल तक सीएम शिवराज सिंह की नाक के नीचे होता रहा। श्री सिंह ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2007 में कानून में परिवर्तन कर शासकीय नौकरी में भर्ती के लिए भी व्यापमं को अधिकृत किया था। व्यापमं का गठन मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश प्रक्रिया के लिए हुआ था, लेकिन अपने चहेतों को प्रवेश और शासकीय नौकरी में भर्ती किए जाने के लिए ही कानून में परिवर्तन किया गया। इसके लिए व्यापमं में टेक्नालाजी का भरपूर दुरुपयोग किया गया।
मामले में दो हजार से अधिक लोगों को आरोपित बनाया गया, लेकिन सीएम शिवराज, केंद्रीयमंत्री उमाभारती सहित अन्य मंत्रियों और अधिकारियों को आरोपित नहीं बनाया गया। मध्यप्रदेश पुलिस, एसटीएफ ने प्रभावशाली लोगों के दबाव में आकर उनके नामों का उल्लेख होने के बाद भी उन्हें आरोपित नहीं बनाया।
हमने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के लिए सुप्रीमकोर्ट में याचिका पेश की थी जिसे स्वीकार करते हुए मामले की जांच भी सीबीआई को सौंप दी गई। हमें सीबीआई पर भरोसा था कि वह निष्पक्ष जांच कर दोषी मंत्रियों व अफसरों को आरोपित बनाएगी लेकिन प्रभावशाली लोगों के दवाब में सीबीआई ने भी जांच में ईमानदारी नहीं बरती।
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