श्रीकृष्ण का नाम लिया गया हो तो ऐसा कभी हुआ नहीं कि राधा जी का नाम ना लिया गया हो। भगवान श्रीकृष्ण शंकरजी से कहते हैं–’हे रुद्र! यदि मुझे वश में करना चाहते हो तो मेरी प्रियतमा श्रीराधा का आश्रय ग्रहण करो.’ इसी तरह श्रीराधा को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण की आराधना करनी चाहिए। श्रीकृष्ण को आम भक्त राधे-कृष्ण कहकर ही पुकारते हैं। क्योंकि यह दो शब्द, यह दो नाम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं और इन्हें कोई अलग नहीं कर सकता है।
कौन हैं राधा जी?
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने में राधा जी का जन्म हुआ था। इस दिन को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। राधा जी का जन्म कृष्ण के साथ सृष्टि में प्रेम भाव मजबूत करने के लिए हुआ था। कुछ लोग मानते हैं कि राधा एक भाव है, जो कृष्ण के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण के प्रेम में लीन होता है, राधा कहलाता है। वैष्णव तंत्र में राधा और कृष्ण का मिलन ही व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य होता है।
राधा अष्टमी का व्रत का महत्व-
राधा अष्टमी के नाम से इस व्रत को जाना जाता है। इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है। इस व्रत को करने से भाद्रपक्ष की अष्टमी के व्रत से ही महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत भी होती है।
कैसे करें राधा अष्टमी का व्रत
सुबह-सुबह स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें. कलश पर तांबे का पात्र रखें। अब इस पात्र पर वस्त्राभूषण से सुसज्जित राधा जी की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद राधाजी का षोडशोपचार से पूजन करें। ध्यान रहे कि पूजा का समय ठीक मध्याह्न का होना चाहिए। पूजन पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें। दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें।