भोपाल। मध्यप्रदेश में अब तक कोई क्षेत्रीय पार्टी नहीं थी। जो थीं, वो भी प्रदेश के एक क्षेत्र तक सीमित थीं परंतु इस बार यहां काफी कुछ नया नजर आ रहा है। बीएसपी पहले से ज्यादा ताकत से उतर रही है। प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने के लिए बना संगठन सपाक्स, अब सपाक्स पार्टी हो गया है। सरकार से अपने अधिकार मांगने के लिए बना संगठन जय आदिवासी युवा संगठन अब चुनाव लड़ रहा है। इसी श्रृंखला में एक और नया नाम जुड़ने वाला है। भक्तों को भगवान की कथाएं सुनाने वाले देवकीनंदन ठाकुर ने भी पार्टी बना ली है। 29 को इसका विधिवत ऐलान किया जाएगा।
एससी एसटी एक्ट के खिलाफ आंदोलन में उतरे कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर जातियों को अनुसूचित करने के खिलाफ हैं परंतु ऐलान किया गया है कि उनकी पार्टी मप्र की सभी 230 व राजस्थान की कुछ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उनकी पार्टी अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भी लड़ेगी। बुधवार को अखंड भारत मिशन के राष्ट्रीय महासचिव विजय शर्मा ने भोपाल के शक्तिनगर क्षेत्र में मिशन के कार्यालय के शुभारंभ मौके पर इसकी घोषणा की। अभी पार्टी का नाम और चिन्ह घोषित नहीं किया गया है। खुद देवकीनंदन ठाकुर 29 अक्टूबर को भोपाल में पार्टी के नाम व चिन्ह की घोषणा करेंगे। वे इस दिन भोपाल समेत प्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की भी घोषणा कर सकते हैं।
अखंड भारत मिशन के महासचिव विजय शर्मा ने बताया कि एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण ने समाज को बांटा है। यह कानून प्रदेश व देश विरोधी है। इसलिए देवकीनंदन ठाकुर ने प्रत्येक पार्टी के जनप्रतिनिधियों को इस कानून के खिलाफ आवाज उठाने का मौका दिया था। सरकार को भी चेताया था कि ऐसे कानून को समाज पर जबरन न थोपा जाए। फिर भी सरकार नहीं मानी। आम जनता ने विरोध किया तो उन पर हमले किए। इसके कारण सपूर्ण समाज में असंतोष का माहौल है। इसके कारण अखंड देवकीनंदन ठाकुर ने सक्रिय राजनीति में उतरने का निर्णय लिया है।
गैर सवर्णों को भी बनाएंगे उम्मीदवार
जिन सीटों पर सवर्ण प्रत्याशी नहीं मिलेंगे, उन सीटों पर गैर सवर्ण को भी उम्मीदवार बनाएंगे। महासचिव ने बताया कि हम एससी-एसटी वर्ग के खिलाफ नहीं है, बल्कि एट्रोसिटी एक्ट व आरक्षण के खिलाफ हैं, क्योंकि इस तरह के कानून से एसटी-एससी वर्ग के लोगों का भी नुकसान हुआ है। जिन लोगों को फायदा मिल रहा है, उन्हें मिलता ही जा रहा है। वहीं एससी-एसटी के एक बड़े तबके को लगातार इन कानूनों के लाभ से वंचित रखा गया है।
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