भोपाल। एक बात तो यह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीति के सारे भविष्यवक्ताओं और सटोरियों के पूर्वानुमान धरे के धरे रह जाएंगे। ऊंट किसी करवट बैठेगा भी या नहीं, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। इस बार किसी के समर्थन में कोई लहर नहीं है। विरोधी में 'तितली' सा तूफान नजर आ रहा है। इस सबके बीच चौंकाने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश की 35 आरक्षित सीटों के भाग्यविधात सवर्ण और पिछड़ा वर्ग के मतदाता है। यानि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर विधायक का चुनाव अनुसूचित जाति के वोटों से नहीं बल्कि सवर्ण और पिछड़ा वर्ग के वोटों से होगा।
28 सीटों पर भाजपा का कब्जा है, लेकिन अब...
राज्य में 35 एससी आरक्षित सीट हैं और इसमें से 28 पर बीजेपी का कब्जा है। पांच सीटों-देवसर 47 प्रतिशत, परासिया 45, आमला, गोटेगांव और माहेश्वर में 41 फीसदी मतदाता- पर एससी और एसटी वोट 31 से 34 फीसदी के बीच हैं। इससे इन सीटों पर सामान्य, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। शायद यहां भाजपा की जीत जातिगत आधार पर आरक्षण विरोधी पार्टी होने के कारण ही होती थी लेकिन अब...।
इन सीटों को आरक्षित क्यों किया गया
मध्य प्रदेश में आरक्षित सीटों पर एससी मतदाताओं की संख्या 15 से 28 फीसदी के करीब है। इन सीटों को इस वजह से आरक्षित घोषित किया गया है क्योंकि उस जिले में इन सीटों पर सबसे ज्यादा एससी वोटर हैं। इसी तरह से राज्य में एसटी के लिए सीटों का आरक्षण करते समय उस क्षेत्र में एससी वोटर की कोई मिनिमम संख्या की शर्त नहीं है। इसी वजह से भोपाल जिले में वर्ष 2008 में सीटों की कुल संख्या चार से सात किए जाने पर बेरासिया सीट को एससी के लिए आरक्षित घोषित कर दिया गया।
जिले की आबादी के आधार पर कोई भी सीट आरक्षित कर दी जाती है
मध्य प्रदेश में यह फैसला किया गया कि जिले में एससी की कुल आबादी 17 फीसदी होने की वजह से एक सीट उनके लिए आरक्षित कर दी जाए। इस सीट पर अब गैर आरक्षित श्रेणी के मतदाता विधानसभा चुनाव में एससी उम्मीदवारों का भाग्य तय करेंगे। इस मुद्दे पर बीजेपी के एक नेता कहते हैं, 'हां बेरासिया में सामान्य मतदाता उम्मीदवारों का भाग्य तय करेंगे लेकिन इससे कोई ज्यादा बदलाव नहीं आएगा क्योंकि सभी प्रत्याशी अनुसूचित जाति से हैं।'
हम सभी आरक्षित सीटों पर चुनाव जीतेंगे: सपाक्स
उधर, इस बार के विधानसभा चुनाव में जाति आधारित आरक्षण और एससी-एसटी ऐक्ट में बदलाव के खिलाफ सवर्ण मतदाता लामबंद हैं। क्या जातियों के बीच तनाव से वोटों में कमी होने पर बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है ? इस सवाल पर सवर्ण जातियों के संगठन सपाक्स के नेता भी सहमत हैं। सपाक्स के अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं, 'हम सभी आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और आप देखेंगे कि हम सभी सीटों पर चुनाव जीतेंगे।'