भोपाल। पहले हिंदू महासभा, फिर जनसंघ, फिर जनता पार्टी और अब भारतीय जनता पार्टी। नाम बदले लेकिन नेताओं के चेहरे लगभग वही थे। कहते हैं मध्यप्रदेश में संघ की जड़ें काफी मजबूर हैं। यहीं से देश भर में भाजपा का विस्तार हुआ परंतु 62 साल बाद भी भाजपा अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई है। आज भी चुनाव जीतने के लिए उसे संघ की बैसाखी की जरूरत होती है। 2018 में एक बार फिर संघ सक्रिय हो गया है। वो भाजपा को स्पून फीडिंग कराएगा।
हर बार संघ की गोद में बैठकर सत्ता तक पहुंची भाजपा
1956 में मध्यप्रदेश का गठन हुआ और कांग्रेस के रविशंकर शुक्ल ने पहली सरकार बनी। 1977 राष्ट्रपति शासन लगने तक यहां लगातार कांग्रेस ही सत्ता में रही। भाजपा एक भी बार उसे सत्ता से बाहर नहीं कर पाई। राष्ट्रपति शासन के बाद देश भर में कांग्रेस विरोधी लहर चली और इसी लहर में भाजपा को सत्ता तक पहुंचने का अवसर मिला। 1977 से 1980 तक भाजपा के तीन मुख्यमंत्री बदले। 80 में फिर कांग्रेस की अर्जुन सिंह सरकार आ गई। 1990 में राम मंदिर आंदोलन की आंधी के सहारे भाजपा सत्ता तक पहुंची और 1992 में बावरी मस्जिद विध्वंस के बाद राष्ट्रपति शासन लग गया। 1993 का चुनाव हारी और सत्ता से बाहर हो गई। 2003 में दिग्विजय सिंह के जबर्दस्त विरोध की लहर के कारण भाजपा को सत्ता सुख मिला। इसमें भी संघ का 100 प्रतिशत योगदान रहा।
15 साल की सत्ता के बाद भी पोलियोग्रस्त है भाजपा
2003 से 2018 तक लगातार भाजपा सत्ता में है। 2003 में दिग्विजय सिंह के विरोध के कारण सत्ता मिली। 2008 में 'दिग्विजय सिंह आ जाएगा' का खौफ दिखाकर संघ की मदद से सत्ता तक पहुंची। 2013 में संघ की मदद से मोदी लहर चली और भाजपा की सरकार बनी। 2018 में उम्मीद थी कि भाजपा बिना संघ के अपने दम पर चुनाव लड़ेगी परंतु अब भी भाजपा पोलियोग्रस्त ही है। ना तो शिवराज सिंह का जादू चल रहा है और ना ही अमित शाह का मैनेजेंट। 62 साल में भाजपा ऐसे नेता पैदा नहीं कर पाई जो अपनी दम पर पार्टी को चुनाव जिता सकें। पिछले दिनों खुद अमित शाह संघ कार्यालय पहुंचे और मदद के लिए गिड़गिड़ाए। एक बार फिर संघ ने कमान अपने हाथ में ले ली है। हर विधानसभा में संघ सक्रिय हो गया है। सवाल सिर्फ यह है कि 38 साल की भारतीय जनता पार्टी वयस्क कब हो पाएगी।
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