दिवाली हो और पटाखों की धूम न हो, ऐसा भला हो सकता है क्या। लेकिन पटाखे अगर हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हों, तो इस बारे में चिंता करना जायज है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पटाखों का प्रयोग करने की इजाजत रात 8 से 10 बजे तक ही दी है। इस दौरान शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रहेगा। ऐसे में दिवाली की धूम-धड़ाम के बीच हेल्थ पर काफी बुरा असर पड़ता है। ऐसे में हेल्थ संबंधी समस्याओं से आखिर कैसे बचा जा सकता है और बीमारियों से पीडि़त लोग खुद कैसे अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर सकते हैं, जानिए यहां।
# दमा के मरीजों पर पटाखों के धुएं का क्या असर पड़ता है-
विशेषज्ञों के अनुसार यूं तो दिवाली खुशियों का त्योहार है, लेकिन पटाखों के धुएं की वजह से दमा, सीओपीडी या रहाइनिटिस के मरीज बहुत बढ़ जाते हैं। पटाखों में मौजूद पार्टिकल्स सेहत पर बुरा असर डालते हैं, जिससे दमा के मरीजों को सांस लेने में बहुत परेशानी होती है, धुएं का असर फेफड़ों पर ज्यादा पड़ता है। फेफड़ों में सूजन आ जाती है, जिससे फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं और कई बार नौबत यहां तक आ जाती है कि ऑर्गन फेलियर हो जाता है और मौत भी हो जाती है, ऐसे में इन बीमारियों से पीडि़त मरीजों को प्रदूषित हवा से बचकर ही रहना चाहिए।
# बच्चे और गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे नुकसानदायक हैं पटाखें-
बच्चों और प्रेग्नेंट महिलाओं को पटाखों के धुएं से बचकर रहना चाहिए। पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं बच्चों में सांस की समस्या पैछा कर सकता है। दरअसल, पटाखों में हार्मफुल केमिकल होते हैं, जिनके कारण बच्चों की बॉडी में टॉक्सिन का लेवल बढ़ जाता है, जिससे उनका डवलपमेंट रूक जाता है। वहीं गर्भवती महिलाओं के अबॉर्शन होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
# क्या पटाखों का धुआं और आवाज भी है नुकसानदायक-
शोर का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार पटाखों का शोर अगर 100 डेसिबल से ज्यादा हो तो वह हमारी हियरिंग पॉवर पर बुरा असर डालता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार शहरों के लिए 45 डेसिबल की आवाज हमारे कानों के लिए अनुकूल होती है। लेकिन बड़े शहरों में शोर का स्तर 90 डेसिबल से भी ज्यादा है। शोर के कारण व्यक्ति की नींद के साथ हाईब्लड प्रेशर पर भी असर पड़ता है। शोर में रहने से बीपी 5 से 10 गुना बढ़ जाता है।
# पटाखों के जलने से कैसी गैस निकलती हैं-
पटाखों के कारण हवा में प्रदूषण बढ़ जाता है. धूल के कणों पर कॉपर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाते हैं. इन गैसों के हानिकारक प्रभाव होते हैं. इसमें कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है. जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है.
# तो क्या सावधानियां बरतें-
- एलर्जी से बचने के लिए मुंह पर रूमाल या कपड़ा ढंक लें।
- दमा के मरीज इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें।
- जहां ज्यादा संख्या में पटाखे फूट रहे हों, उस जगह जाने से बचें।
- अगर बच्चे आपके साथ हैं, तो उन्हें पटाखों की तेज आवाज से बचाने के लिए उनके कान पर हाथ जरूर रख लें। वरना कानों पर बुरा असर पड़ सकता है।
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