इस बार दीपावली का पवित्र त्योहार 7 नवंबर को देशभर में मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों में से दिवाली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्व है। वैसे तो माना जाता है कि ये त्योहार भगवान श्रीराम के वनवास पूरा करके लौटने की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन ये त्योहार केवल भगवान राम के कारण से नहीं बल्कि इसके कई पौराणिक कारण हैं, जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। तो चलिए हम आपको बताते हैं ऐसे किन-किन कारणों से दिवाली मनाई जाती है।
देवी लक्ष्मी का जन्मदिन-
माना जाता है कि इस दिन राक्षसों और देवताओं द्वारा समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी क्षीर सागर ये कार्तिक महीने की अमावस्या को ब्रह्मांड में आई थीं। इसी वजह से यह दिन माता लक्ष्मी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिवाली के त्योहार के रूप में भी बनाया जाता है।
भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को बचाया था-
हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक महान दावन राजा बाली हुआ करता था। वे तीनों लोकों पर राज करना चाहता था। उसे भगवान से असीमित शक्तियों का वरदान हासिल था। लेकिन भगवान विष्णु ने राजा बाली से तीनों लोकों को बचाया था और माता लक्ष्मी को उसकी जेल से भी छुड़ाया था। तभी से ये दिन बुराई की सत्त पर भगवान की जीत और धन की देवी लक्ष्मी को बचाने के रूप में मनाया जाता है।
राज्य में हुई थी पांडवों की वापसी-
महाभारत के अनुसार इस दिन पांडव 12 साल बाद कार्तिक महीने की अमावस्या को अपने राज्य में लौटे थे। बता दें कि कौरवों से जुए में हारने के बाद उन्हें 12 सालों के लिए निष्काषित कर दिया था।
विक्रमादित्य का हुआ था राज्याभिषेक-
इस दिन राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था, तब से लोगों ने दिवाली को ऐतिहासिक रूप से मनाना शुरू कर दिया।
जैनियों का होता है खास दिन-
तीर्थकार महावीर को इस खास दिन दिवाली पर ही निर्वाण की प्राप्ति हुई थी , जिसके उपलक्ष्य में जैनियों में यह दिन दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
मारवाड़ी और गुजराती लोगों का नया साल होता है दिवाली-
हिंदू कैलेंडर के अनुसार मारवाड़ी लोग अश्विन की कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन परदिवाली पर अपने नए साल को हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। उसी तरह चंद्र कैलेंडर केअनुसार गुजराती लोग भी कार्तिक के महीने के पहले दिन दिवाली के एक दिन बाद अपना नया साल मनाते हैं।
सिखों के लिए दिवाली इसलिए होती है खास-
अमर दास जो सिखों के तीसरे सिख गुरू थे, उन्होंने दिवाली को लाल -पत्र दिन के पारंपरिक रूप में बदल दिया। इस दिन सभी सिख अपने गुरूजनों का आशीवार्द पाने के लिए एक साथ मिलते हैं।
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