एक आम कहावत है की “गये थे नमाज़ बख्शाने, रोजे गले लग गये।” सीबीआई के जबरिया छुट्टी काट रहे डायरेक्टर आलोक वर्मा के साथ ऐसा ही हुआ। साथ ही सीवीसी को यह स्वीकार करना पड़ा कि वो कोई जाँच आलोक वर्मा के विरुद्ध कर रही है। जबरिया छुट्टी पर भेजने और का मामला जहाँ का तहां रह गया। अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के कान भी उमेठे हैं। वैसे आलोक वर्मा ने केंद्र सरकार के उस फ़ैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें सरकार ने जबरन छुट्टी पर भेजा दिया था। वर्मा पर उनके सहयोगी राकेश अस्थाना ने आरोप लगाया था कि वर्मा ने उन लोगों से घूस ली है जिनके ख़िलाफ़ सीबीआई कई गंभीर आरोपों की जांच कर रही थी। ऐसा ही आरोप लगा कर वर्मा ने अस्थाना के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर ली थी।
वैसे सीबीआई के पास इस समय कई ताक़तवर और पैसे वाले लोगों के मामले जाँच में हैं, जिसमें एक मीट कारोबारी मोइन कुरैशी का मामला भी था और इसमें ही रिश्वत लेने के आरोप दोनों पक्ष एक दूसरे पर लगा रहे हैं। सारा घटनाक्रम इस बात की पुष्टि करता है कि वर्मा के ख़िलाफ़ तख़्ता पलट की तैयारियां पहले से ही थीं, उनके द्वारा किसी क़दम को उठाए जाने से पहले उन्हें किनारे कर दिया जाए। अब अस्थाना और वर्मा दोनों एक किनारे पर आ गये हैं। सर्वोच्च न्यायलय ने कार्यकारी डायरेक्टर को नीतिगत फैसले लेने से न केवल रोक दिया है, बल्कि उनके द्वारा लिए गये हर फैसले की जानकारी भी मांगी है।
वैसे सीबीआई एक स्वायत्त संस्था है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ सर्वोच्च न्यायलय के लिए ज़िम्मेदार है, वो भी सुबूतों के आधार पर। हालांकि सीबीआई द्वारा किसी मामले में दोषी ठहराने के फैसले उसे सौंपे गये मामलों के 3 प्रतिशत से अधिक नहीं है। सीबीआई के आलोचकों का कहना है कि कई बड़े मामलों को सुलझाने में सीबीआई की रफ़्तार बहुत धीमी है। इस सबके बावजूद सीबीआई की जैसी भी है, उसकी एक साख है। जिसकी वजह से जब लोगों को लगता है कि स्थानीय पुलिस ने न्याय नहीं किया है और वे सीबीआई जांच की मांग करते हैं।
मौजूदा घटनाक्रम में सीधे तौर सरकार फंसती प्रशासनिक पेंच में फंसती नज़र आ रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सीवीसी को दो सप्ताह में जांच पूरी करने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश ने जाँच सेवा निवृत्त जस्टिस ए के पटनायक के नेतृत्व में जांच कराने का समयबद्ध आदेश दिया है। उन्होंने ये भी साफ़ कर दिया है कि कार्यकारी डायरेक्टर के तौर पर नागेश्वर राव को केवल रूटीन काम ही देखेंगे। नागेश्वर राव अंतरिम निदेशक बने रहेंगे। दूसरे पक्ष अस्थाना को भी सर्वोच्च न्यायलय ने पृथक से पिटिशन दायर करने की सलाह दी है।
इस मामले का एक पहलू और भी है। जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय इस महत्वपूर्ण फैसले पर निर्णय सुना रहा था। कांग्रेस सारे घटनाक्रम में राफेल जोड़ कर सडक पर उतर आई थी और राहुल गाँधी को गिरफ्तारी भी देना पड़ी। जाँच का दायरा सर्वोच्च न्यायालय ने तय कर दिया है, देखना यह है कि इससे राफेल जुड़ सकेगा या नहीं। अभी तो सी बी आई और सरकार दोनों के गले रोजे लग गये हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।