मैसूर में मनाया जाने वाला गोम्बे हब्बा महोत्सव क्या है , जानिए यहां - gombe habba festival Story Hindi

Bhopal Samachar
आप सभी जानते हैं कि मैसूर का दशहरा दुनियाभर में मशहूर है। 10 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में भारी संख्या में पर्यटक मौजूद होते हैं। यहां का दशहरा तो लोग खासतौर पर देखने यहां आते ही हैं, साथ ही यहां का गोम्बे हब्बा (gombe habba) महोत्सव को भी काफी पसंद किया जाता है। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दशहरे की परंपराओं के साथ इस महोत्सव का महत्व जुड़ा हुआ है। ये उत्सव उस समय से चला आ रहा है जब वाडेयार राजघराने के शासक मैसूर की सत्ता पर आसीन थे। इस नजरिए से मैसूरवासियों की भावनाएं काफी करीबी से इस महोत्सव के साथ जुड़ी हैं। तो चलिए जानते हैं आखिर है क्या ये गोम्बे हब्बा महोत्सव और क्यों इतना प्रचलित है। 

क्या है ये गोम्बे हब्बा महोत्सव- 

गोम्बे हब्बा को गुडिय़ों का उत्सव कहा जाता है। एक उत्सव नवरात्रि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां दशहरे के मौके पर हर घर में गुडिय़ों का मेला जरूर देखने को मिलता है। मैसूर पैलेस बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार इस परंपरा में काफी गहरा अर्थ छिपा है। गोम्बे हम्बा के तहत नौ गुडिय़ों की सजावट की जाती है जो देवी दुर्गा या चामुंडेश्वरी के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती  हैं। इन गुडिय़ाओं में महिलाओं की हस्तकला का अच्छा खासा प्रदर्शन होता है। 

बताया जाता है कि ये परंपरा 16वीं सदी से चली आ रही है। शुरूआती तौर पर गोम्बे हब्बा में देवी गौरी की आकृतियों में प्रतिमाओं में संवारने का प्रयास किया जाता था। दशहरे के नौ दिनों के दौरान लोग घरों में इन नौ रूपों की ही पूजा करते थे। 18वीं शताब्दी में परंपरा थोड़ी बदल दी गई और देवियों के स्थान पर गुडिय़ों को सजाया जाने लगा। मैसर का राजपरिवार भी इस देवी दुर्गा की गुडिय़ों में दिनचस्पी लेने लगा और इन्हें बनाने के लिए एक विशेष स्थान चिन्हित कर दिया गया। जिसे गोम्बे तोट्टी से नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि ये गुडिय़ाएं देवी का स्वरूप धारण कर अशुभ आत्माओं से परिवारों की रक्षा करती हैं।   

पहले तो दशहरे का महोत्सव राज परिवार के लोगों के लिए ही हुआ करता था लेकिन आगे चलकर इसे आम लोगों के लिए भी शुरू कर दिया गया। फिर भी, एकबारगी सबको इस उत्सव में शामिल नहीं किया गया। सिर्फ राजदरबार के उच्च-पदस्थ लोगों को ही दशहरे के त्यौहार में शामिल किया गया। धीरे-धीरे कुछेक दशकों बाद इसे सार्वजनिक रूप से मनाया जाने लगा। गोम्बे हब्बा के दौरान घरों के बच्चों को (खास तौर पर कन्याओं को) जो गुड़िया सबसे अधिक पसंद होती थी वह उनकी शादी के समय माता-पिता उनके साथ दे दिया करते थे। उन दिनों विवाहित किशोरियों के बीच गुड़ियों के साथ खेलना पसंद किया जाता था। इस परंपरा ने भी गोम्बे हब्बा को पूरे राज्य में अधिक लोकप्रियता दिला दी।
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!