इंदौर। थोड़े से समय में मध्यप्रदेश की 80 विधानसभा सीटों पर प्रभाव जमाने वाला संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति अब कांग्रेस के मकड़जाल में फंस गया है। जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा कांग्रेस से गठबंधन के न्यौते पर दिल्ली पहुंचे और खाली हाथ लौट आए। इस घटनाक्रम से जयस और हीरा अलावा दोनों की छवि को नुक्सान पहुंचा है। इंदौर में हीरा अलावा ने बयान दिया कि वो कांग्रेस से गठबंधन के लिए 3 दिन तक और इंतजार करेंगे। सवाल यह उठ रहे हैं कि हीरा अलावा का टारगेट क्या था, आदिवासियों के हितों की लड़ाई या कांग्रेस से गठबंधन।
क्या कहा हीरा अलावा है
जयस सुप्रीमो हीरा अलावा ने कहा, "अगर 30 अक्टूबर तक चुनावी गठबंधन पर हमारी कांग्रेस से सहमति नहीं बनी, तो हम आगामी चुनावों में अपने नेताओं को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतारेंगे।" अलावा ने बताया कि वह धार जिले के कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं और जयस ने चुनावी गठबंधन की चर्चाओं के दौरान कांग्रेस से उसके कब्जे वाली यह सीट भी मांगी है। उन्होंने कहा, "कुक्षी क्षेत्र हमारे संगठन का गढ़ है। इसलिये इस सीट पर हमारा स्वाभाविक दावा है।"
क्यों लोकप्रिय हो गया था जयस
जय आदिवासी युवा शक्ति की लोकप्रियता के पीछे सिर्फ एक कारण था और वो था डॉ. हीरा अलावा। लोगों के बीच एक संदेश स्पष्ट रूप से गया था कि एक MBBS पास युवा AIIMS की आरामदायक नौकरी छोड़कर आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहा है। इसके चलते हीरा अलावा को लोकप्रियता मिली और जयस को जनाधार। जब हीरा अलावा ने जयस कार्यकर्ताओं को चुनाव में उतारने का ऐलान किया तब भी छवि पर कोई दाग नहीं लगा। निश्चित रूप से आदिवासी समाज की बात रखने के लिए सदन में प्रतिनिधित्व होना चाहिए लेकिन अब बात बदल गई है।
जिस कांग्रेस ने आदिवासियों का शोषण किया, उससे गठबंधन क्यों
सवाल उठ रहे हैं कि जिस कांग्रेस ने आदिवासियों को वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा, अब उससे गठबंधन की कोशिश क्यों की जा रही है। हीरा अलावा का कद उस समय काफी बढ़ गया था जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उन्हे भाजपा में आमंत्रित किया और अलावा ने दो टूक इंकार कर दिया लेकिन अब जबकि गठबंधन के लिए हीरा अलावा दिल्ली दरबार में हाजरी देते नजर आए तो वही ग्राफ तेजी से नीचे भी गिर गया। यदि कांग्रेस के सहारे ही आदिवासियों का हित हो सकता है तो हीरा अलावा को कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद आदिवासियों के बीच काम करना चाहिए था। जो कुछ भी फिलहाल चल रहा है बिल्कुल बाबा रामदेव की तरह है। विदेशी उत्पादों का विरोध करके लोकप्रियता हासिल करना और फिर अपना कारोबार शुरू करना।
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