बीमा कंपनियों जब ग्राहक का बीमा कर रही होतीं हैं तब तो खुद को ऐसे प्रस्तुत करतीं हैं मानो उनसे ज्यादा संवेदनशील कोई नहीं, लेकिन जब बीमा क्लेम की बारी आती है तो वही बीमा कंपनी 'क्रूर सिंह' बन जाती है। बारीक अक्षरों में लिखे नियमों का हवाला देकर बीमा क्लेम को खारिज कर दिया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं, बीमा कंपनियां जिन नियमों का हवाला देतीं हैं उनमें से कुछ गैरकानूनी भी होते हैं। ऐसी बीमा कंपनियों को सबक सिखाया जा सकता है:
एक घटना रायपुर पंजाबी कालोनी रहवासी मंजू वीरनानी के साथ घटित हुई। परिवादी के पति स्व.अशोक वीरनानी ने 9,95000 रुपए की बीमा पॉलिसी कराई थी। 2010 में वीरनानी का स्वर्गवास हो गया, जिसके बाद परिवादी ने बीमाधन के लिए क्लेम किया। इस पर अनावेदक भारतीय जीवन बीमा निगम पंडरी परिवादी को यह कहकर लगातार लौटाता रहा कि बीमाधारक मधुमेह से पीड़ित था। बीमा कराते समय इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी।
प्रकरण फोरम में पहुंचने के बाद फोरम अध्यक्ष उत्तरा कुमार कश्यप, सदस्य संग्राम सिंह भुवाल, सदस्य प्रिया अग्रवाल ने पूरे मामले की पड़ताल करते हुए अनावेदक क्रमांक 1 के इस कथन को गलत माना कि बीमाधारक ने पॉलिसी कराते समय मधुमेह रोग की जानकारी नहीं दी थी, क्योंकि बीमा नियमानुसार कोई भी कंपनी बीमा करने से पहले बीमाधारक का मेडिकल चेकअप रिपोर्ट तैयार करती है। उसके बाद ही संबंधित ग्राहक को बीमा का लाभ दिया जाता है। इसलिए अनावेदक का तथ्य सही नहीं है। यह कथन व्यापारिक दृष्टि से दोषपूर्ण है। परिवादी को अनावेदक बीमा राशि सहित 18 फीसद वार्षिक व्याज के साथ वादव्यय क्षतिपूर्ति के रूप में 25 हजार रुपए हर्जाना देने का फैसला सुनाया।
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