#MeToo एमजे अकबर: दलील और वकील कोई कुर्सी नहीं बचा पाए, इस्तीफा | खबर पर मुहर

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। #MeToo के बाद विवाद की जद में आए नरेंद्र मोदी सरकार के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर को अंतत: कुर्सी गंवानी ही पड़ी। उनकी तमाम दलीलें और वकीलों की फौज के बावजूद वो अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए। इससे पहले उन्होंने महिला पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का केस फाइल करके खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश की थी परंतु माना जा रहा ​था कि संघ और संगठन दोनों ही अकबर को मौका देने के मूड में नहीं हैं। बता दें कि भोपाल समाचार डॉट कॉम ने आज सुबह ही बता दिया था कि अकबर अब फंस गए हैं और कुर्सी बचाने की कोशिश कभी भी नाकाम हो सकती है। (यहां पढ़ें)

एमजे अकबर (MJ Akbar) ने प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना इस्तीफा भेज दिया है। बता दें कि अकबर पर 16 महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगयाा है। एजमे अकबर ने इस्तीफा देने के बाद कहा कि वह न्याय के लिए व्यक्तिगत लड़ाई लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा कि अब वह निजी तौर पर केस लड़ेंगे। 

कौन हैं एमजे अकबर
एमजे अकबर का जन्‍म 11 जनवरी 1951 को हुआ। उनका पूरा नाम मुबशर जावेद अकबर है। जानकारी के मुताबिक उनके दादा रहमतुल्‍ला धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बने थे। वह हिंदू थे, लेकिन उनकी शादी मुस्लिम महिला से हुई थी। अकबर की शुरुआती शिक्षा कोलकाता बॉयज स्‍कूल में हुई, इसके बाद उन्‍होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई-लिखाई की। एमजे अकबर दुनिया के नामचीन पत्रकारों में शुमार रहे हैं। वह द टेलिग्राफ के संस्थापकों में शामिल रहे हैं। आज भले ही एमजे अकबर बीजेपी में हों, लेकिन कभी कांग्रेस में उनकी अच्छी-खासी पैठ थी। खासकर राजीव गांधी से अच्छी नजदीकी थी और उनके प्रवक्ता भी थे। 1989 में उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया से सियासत में कदम रखा और बिहार के किशनगंज से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते।

राजीव गांधी से नजदीकी की वजह से एमजे अकबर का कांग्रेस में ठीक-ठाक रुतबा था, लेकिन राजीव गांधी की हत्या के बाद वे पार्टी में असहज महसूस करने लगे और राजनीति छोड़ने का निर्णय ले लिया। साल 1992 में वे कांग्रेस छोड़कर वापस पत्रकारिता की दुनिया में लौट आए।

एमजे अकबर ने 90 के दशक में अंग्रेजी अखबार 'द एशियन एज' की स्‍थापना की। यह दौर मंदिर-मस्जिद की राजनीति का था और कहा जाता है कि इसी दौर में एमजे अकबर की बीजेपी के शीर्ष नेताओं से करीबी बढ़ी। दूसरी तरफ, 2004 में कांग्रेस ने सत्‍ता में वापसी की। कहा जाता है कि इसके बाद एमजे अकबर की स्थिति द एशियन एज में कमजोर हुई और उन्हें पद से हटना पड़ा।

'द एशियन एज' से हटने के बाद एमजे अकबर ने कुछ समय के लिए इंडिया टुडे में काम किया और द संडे गार्जियन नाम का अखबार भी शुरू किया। इस दौरान वह अपना अखबार निकालते रहे। इस दौर में उनकी बीजेपी नेताओं से और नजदीकी बढ़ी। एमजे अकबर ने जवाहर लाल नेहरू की जीवनी 'द मेकिंग ऑफ इंडिया' और 'द सीज विदिन', 'दि शेड ऑफ शोर्ड', 'ए कोहेसिव हिस्टरी ऑफ जिहाद' जैसी किताबें भी लिखी हैं।

राजनीति में फिर हुई वापसी
एमजे अकबर 2014 में नरेंद्र मोदी के करीब आए और एक बार फिर पत्रकारिता को अलविदा कह औपचारिक तौर पर राजनीति ज्वाइन कर ली। बीजेपी ज्‍वाइन करने के बाद अकबर को पार्टी का प्रवक्‍ता बना दिया गया। हालांकि कहा जाता है कि भाजपा के अंदर भी तमाम लोग उन्हें पसंद नहीं करते हैं। शीर्ष नेतृत्व से अच्छे संबंधों की बदौलत एमजे अकबर को 5 जुलाई 2016 को मोदी सरकार में विदेश राज्यमंत्री बनाया गया। पहले उन्हें झारखंड से राज्यसभा सदस्य बनाया गया था। इसके बाद दोबारा वे मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बने।
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