भोपाल। करीब 7 दिन तक दिल्ली में मध्यप्रदेश के सारे दावेदार और दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगा रहा परंतु इस मंथन से कोई मक्खन नहीं निकला। कभी 70 नाम, कभी 100 नाम की चर्चाएं जरूर होतीं रहीं परंतु एआईसीसी के अंदर जो दूध ओंटा जा रहा था वो फट गया। कोई लिस्ट फाइनल नहीं हुई है। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह सहित सभी नेता वापस आ गए हैं। अब 17 अक्टूबर के बाद एक बार फिर कांग्रेस के राजऋषियों का चिंतन शुरू होगा।
क्या कुछ हुआ दिल्ली में
दिल्ली में टिकट वितरण की प्रक्रिया को लेकर व्यायाम/अभ्यास चलता रहा। कभी दावेदारों के इंटरव्यू हुए तो कभी दिल्ली से मध्यप्रदेश में मौजूद नेताओं से फोन पर बातचीत हुईं। सर्वे के नतीजों की समीक्षा की गई। फिर मौजूदा विधायकों की लिस्ट में कांट-झांट कर उसे जारी करने का निर्णय हुए। फिर प्रस्ताव आया कि 2013 में 3000 से कम वोटों से हारने वालों को भी फाइनल कर दिया जाए और अंत में तय हुआ कि 17 अक्टूबर को फिर मिलेंगे।
दवा ही दर्द बन गई, राहुल के पास कोई तोड़ नहीं
राहुल गांधी के लिए तो मध्यप्रदेश में दवा ही दर्द बन गई। कमलनाथ को इस शर्त पर ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था कि वो मध्यप्रदेश में गुटबाजी खत्म कर देंगे जो कांग्रेस की राह में सबसे बड़ी रुकाटव है और चुनाव में फंड की कमी नहीं होगी जिसके कारण माहौल ही नहीं बन पाता। अब हालात यह हैं कि कमलनाथ का अपना गुट काफी मजबूत हो गया है। कमलनाथ खुद अपनी लिस्ट लिए बैठे हैं। कई लोगों को तो 'वादा नहीं वचन' भी दे चुके हैं। रही बात फंड की तो कांग्रेस की तिजोरी में ठंड अब भी बरकरार है। भाजपा के मुकाबले यहां 20 प्रतिशत भी खर्चा नहीं हो रहा। राहुल गांधी के पास इन हालातों में जीतने का कोई फार्मूला नहीं है। रोड-शो सबसे सरल है तो आ रहे हैं।
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