भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 150 का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए कांग्रेस शुरू से गठबंधन का शार्टकट यूज कर रही है। पहले बसपा कांग्रेस की प्राथमिकता थी। जब बसपा, सपा सहित सभी पार्टियों ने टका सा इंकार कर दिया तो अब जयस के साथ संभावनाएं तलाशी जा रहीं हैं। हालात यह हैं कि जयस ने भी कांग्रेस के सामने शर्तें रख दीं हैं। बावजूद इसके कोशिशें जारी हैं।
क्या कर रही है कांग्रेस
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने जयस चीफ हीरा अलावा को दिल्ली बुलाया एवं गठबंधन पर आधिकारिक बातचीत की। सांसद एवं सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विवेक तन्खा भी इस मीटिंग में उपस्थित थे।
जयस ने क्या शर्तें रखीं
जयस ने मालवा-निमाड़ में 46 सीट मांगी हैं। इनमें कुक्षी सीट का नाम भी है। बता दें कि इस सीट पर 33 साल से कांग्रेस का कब्जा है। किसी भी आंधी और लहर में यहां से कांग्रेस को हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।
तो क्या कांग्रेस ने जयस को इंकार कर दिया
कांग्रेस की दुर्गति देखिए कि इसके बावजूद कांग्रेस ने जयस से इंकार नहीं किया। प्रदेश प्रभारी ने हीरा अलावा को दिल्ली में ही रोक लिया है। यहां उनकी राहुल गांधी से बात कराई जाएगी। एक बार फिर हीरा अलावा को मनाने की कोशिश की जाएगी।
जयस क्या है
यह आदिवासी युवाओं का एक संगठन है जिसका नाम रखा गया जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस)। यह मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में आदिवासियों के बीच सक्रिय है। यह कोई राजनैतिक पार्टी नहीं है लेकिन अब राजनीति की मुख्यधारा में इसका नाम लिया जा रहा है। एम्स के डॉ. हीरा अलावा ने इसकी शुरूआत की थी। कम समय में ही यह काफी लोकप्रिय हो गया। अब जयस ने 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इनमें से ज्यादातर सीटों पर भाजपा का कब्जा है परंतु कांग्रेस को डर है कि जयस के उम्मीदवार आने से कांग्रेस के वोट कट जाएंगे।
क्या कांग्रेस के पास अपने आदिवासी नेता नहीं हैं
कांग्रेस के पास आदिवासी नेताओं की फौज है। कांतिलाल भूरिया तो उसी क्षेत्र से आते हैं जहां जयस सक्रिय है। कांतिलाल भूरिया को लोकसभा का टिकट, मंत्री का पद और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सबकुछ आदिवासी राजनीति के कारण ही मिली थी परंतु अब हालात यह हैं कि कांग्रेस के आदिवासी नेताओं की जमीनी पकड़ ही नहीं है। वो गारंटी नहीं दे पा रहे हैं कि जयस से कुछ नहीं होगा, हम सीटें जिताकर देंगे।
क्या डॉ. हीरा अलावा कांग्रेसी है
डॉ. हीरा अलावा कांग्रेसी मानसिकता का नेता नहीं है। असल में वो नेता ही नहीं है। वो तो बस आदिवासियों की आवाज उठा रहा था। आदिवासियों के हित में शिवराज सिंह सरकार का विरोध कर रहा था। ना तो सरकार समझ पाई और ना ही कांग्रेस के नेताओं को समझ आया कि उनका जनाधार खिसक रहा है। भाजपा और कांग्रेस भ्रम में थे। कांग्रेस की गुटबाजी ने डॉ. हीरा अलावा को अवसर दिया और आज वो 80 सीटों की सौदेबाजी के लिए हॉट सीट पर है।
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