
पुलिस उनके साथ अभद्रता कर उनका अपमान करती है, लेकिन कर्मचारियों को मजबूरी में सब सहन करना पड़ता है। चाहे शिक्षक हों, कर्मचारी हों, अतिथि विद्वान हों, आशा-ऊषा कार्यकर्ता हों, विद्यार्थी हों, संविदाकर्मी हों, डाॅक्टर-वकील हों, किसान हों, सभी के साथ शिवराजसिंह ने छल किया है। लिपिक वर्गीय कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवा देने वाले एमपीडब्ल्यू कर्मचारियों की मांगों को हल करने के लिये गठित समितियों की सिफारिशें कर्मचारियों के पक्ष में आने के बावजूद इनकी वेतन विसंगतियों का निराकरण नहीं किया गया।
शिवराजसिंह बतायें कि जब समितियों की सिफारिशें नहीं मानना थीं तो इनका गठन ही क्यों किया गया। जाहिर है कर्मचारियों को बहलाने के लिये इन समितियों का गठन किया गया था।
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