उपदेश अवस्थी/भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में सिर्फ एक ही व्यक्ति है जिसके शब्दों के हजार अर्थ होते हैं, नाम है दिग्विजय सिंह। इन्हे मध्यप्रदेश की राजनीति का चाणक्य भी कहते हैं। बीते रोज दिग्विजय सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो अपने समर्थकों से कह रहे हैं कि 'मेरे भाषण से वोट कट जाते हैं इसलिए मैं रैलियों में नहीं जाता।' यह बयान देश भर में वायरल हुआ। छापा गया, टीवी पर दिखाया गया। सवाल सिर्फ यह है कि क्या यह दिग्विजय सिंह का दर्द था या उनकी नई चाल, जिसमें भाजपा फंस गई।
भाजपा कैसे फंस गई
2003 के चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह का जबर्दस्त विरोध था परंतु उनके कॉकस ने यह जानकारी उन तक पहुंचने ही नहीं दी। आत्ममुग्ध दिग्विजय सिंह गलत फैसले लेते गए और अंतत: शर्मनाक तरीके से हार गए। 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा ने केवल यह जताकर वोट हासिल कर लिए कि 'भाजपा को चुनो नहीं तो दिग्विजय सिंह आ जाएगा'। 2018 में सीएम शिवराज सिंह का पूरा केंपेंन ही दिग्विजय सिंह पर टिका हुआ है। मप्र शासन के जनसंपर्क संचालनालय ने अपनी ही 2 सरकारों के बीच तुलनात्मक अध्ययन वाला विज्ञापन अभियान चलाया। शिवराज सिंह अपनी सभाओं में दिग्विजय सिंह की याद दिलाना नहीं भूलते थे परंतु दिग्विजय सिंह के ताजा बयान से संदेश गया कि कांग्रेस बदल गई है। अब 'दिग्विजय सिंह नहीं आएगा।'
यह दिग्विजय सिंह का दर्द भी तो हो सकता है ?
दिग्विजय सिंह यदि यह बयान लोकसभा चुनाव के समय देते तो निश्चित रूप से यह दर्द ही होता परंतु बताने की जरूरत नहीं कि मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की जड़ें ग्राम पंचायत तक फैली हुईं हैं। दिग्विजय सिंह एकता यात्रा के जरिए मप्र के सबसे सक्रिय कांग्रेस नेता हैं। ना तो कमलनाथ की तरह आॅफिस-आॅफिस खेल रहे हैं और ना ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अप-डाउन करते हैं। वो एक संघ प्रचारक की तरह अपने काम में जुटे हुए हैं। दूसरी बड़ी बात यह कि दिग्विजय सिंह ने यह बयान सार्वजनिक स्थल पर नहीं दिया। जीतू पटवारी के आवास में अपने चुने हुए समर्थकों के बीच दिया है। यदि वो नहीं चाहते तो ना तो यह वीडियो बनता और ना ही वायरल होता।
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