भोपाल। टिकट वितरण में चल रहे घमासान के बीच सीएम शिवराज सिंह चौहान कर्मचारियों को लेकर चिंतित हैं। वो जानना चाहते हैं कि अंतत: कर्मचारियों के मन में क्या है, वो क्या करने वाले हैं। उन्होंने कुछ विशेष सिपहसालारों को इसके लिए तैनात किया है कि कर्मचारियों के मन की बात पता की जाए। पत्रकार श्री वैभव श्रीधर की एक रिपोर्ट के अनुसार इसका आभास सत्ता और संगठन को भी है, इसलिए भारतीय मजदूर संघ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच दो-तीन बार चर्चा का दौर चल चुका है।
मंत्रालय से लेकर पंचायत तक के कर्मचारी नाराज
सूत्रों के मुताबिक मंत्रालयीन कर्मचारी संघ हो या फिर लिपिकवर्गीय कर्मचारी संघ, पंचायत सचिव, रोजगार सहायक, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, पेंशनर्स हों या फिर संविदा कर्मचारी, सब किसी न किसी मुद्दे पर सरकार से खफा हैं। मुख्य कार्यपालन अधिकारी, पंचायत सचिव और संविदा कर्मचारी तो एक साथ एक मंच पर आकर विरोध भी दर्ज करा चुके हैं।
अध्यापकों के साथ ठगी हो गई
अध्यापक संगठन, इस बात से नाराज हैं कि उन्होंने जो मांग की थी, वैसी पूर्ति नहीं हुई। शिक्षा विभाग में इनका संविलियन तो किया पर अलग कैडर बना दिया। नए सिरे से नियुक्ति की गई, जिससे वरिष्ठता नहीं मिली। मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की राज्य वेतन आयोग की सिफारिश के मुताबिक वेतन विसंगति को दूर नहीं किया गया। इनके लिए अलग से समिति बना दी, जिसकी रिपोर्ट का अता-पता ही नहीं है।
समस्या निदान के लिए समिति बनाई फिर कुछ नहीं हुआ
जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संगठन के प्रांताध्यक्ष भूपेश गुप्ता का कहना है कि 28 मई 2018 को सरकार ने एक साथ 40 से ज्यादा संवर्गों की वेतन विसंगति को दूर करने का फैसला कैबिनेट में किया, लेकिन हमें छोड़ दिया। मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि लिपिकों की 75 फीसदी से ज्यादा मांग हल नहीं हुई, जबकि इसके लिए रमेशचंद्र शर्मा की अध्यक्षता में समिति बनाई गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। इस पर कई दौर की चर्चा और सहमति भी हुई पर कोई फैसला नहीं हुआ।
पंचायत सचिवों के साथ पक्षपात हुआ है
पंचायत सचिव संगठन के अध्यक्ष दिनेश शर्मा की मानें तो सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान तो किया पर इसमें रोस्टर लागू कर दिया। अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए अनुग्रह राशि वापस मांगी जा रही है। सातवां वेतनमान निगम, मंडल, प्राधिकरण सहित सभी को दे दिया पर पंचायत सचिवों को इससे महरूम रखा गया।
संविदा कर्मचारियों को बस नियम पकड़ा दिए
संविदा कर्मचारी महासंघ के रमेश राठौर का मानना है कि संविदा अमले को बीस प्रतिशत नियमित पदों पर रखने के लिए नियम तो बना दिए पर इसमें परीक्षा का पेंच फंसा दिया। जबकि, संविदा कर्मचारी परीक्षा देकर ही नौकरी में आए हैं। पेंशनर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेशदत्त जोशी की मानें तो पेंशनर्स के साथ अन्याय हो रहा है। यह लगातार दूसरी बार है जब एरियर नहीं दिया गया।
गैर आरक्षित कर्मचारी माई का लाल से नाराज
पदोन्न्ति में आरक्षण अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। इसको लेकर कर्मचारी आरक्षित और अनारक्षित में बंट चुके हैं। सामान्य, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कर्मचारियों का संगठन सपाक्स बनने के बाद कर्मचारियों को अपनी बात रखने का एक प्लेटफार्म मिल गया है।संभाग, जिला से लेकर तहसील मुख्यालय तक में प्रदर्शन हो चुके हैं।
आरक्षित कर्मचारी: माई का लाल का संतुष्ट नहीं
अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी भी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि पदोन्न्ति में आरक्षण नियम के विवाद का तीन साल बीतने के बाद भी कोई हल नहीं निकल सका है। सत्तारूढ़ दल भाजपा भी इस बात से भलिभांति वाकिफ है कि यह मुद्दा गहरे तक पैठ बना चुका है, इसलिए नाराज लोगों को मनाने की कवायद भी शुरू हो गई है।
इस सरकार में सबकी सुनवाई हुई है: शर्मा
राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा का कहना है कि कर्मचारी एक बड़ा परिवार है। सरकार ने सभी की जायज मांगों को पूरा करने के लिए अपनी क्षमता से बाहर जाकर काम किया है। ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जिसकी सुनवाई नहीं हुई। कुछ कर्मचारी संगठनों की विचारधारा अलग है, इसलिए खफा भी हो सकते हैं पर समग्र रूप से देखें तो कर्मचारी सरकार के साथ हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे बढ़कर कर्मचारियों के लिए काम किया है। किसी भी संगठन के पदाधिकारी का तबादला नहीं हुआ। कुछ मामले अदालत में हैं, इसलिए फिलहाल उन पर कोई निर्णय नहीं हो सकता है।
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