नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तारीख बढ़ा दिए जाने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार अपनी ही पार्टी के दवाब में आ गई है। आरएसएस और भाजपा के लोग चाहते हैं कि मोदी सरकार अध्यादेश लाए और राम मंदिर निर्माण का रास्ता क्लीयर करे लेकिन क्या आपको पता है 25 साल पहले कांग्रेस सरकार अध्यादेश लाई थी और भाजपा ने उसका विरोध किया था। इसे अयोध्या अधिनियम के नाम से जाना जाता है।
विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में बीजेपी के समर्थन से चल रहे राम मंदिर आंदोलन के परिणामस्वरूप 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। इसके एक साल बाद जनवरी 1993 में यह अध्यादेश लाया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 7 जनवरी 1993 को इसे मंजूरी दी थी। इसके तहत विवादित परिसर की कुछ जमीन का सरकार की तरफ से अधिग्रहण किया जाना था। राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने इस बिल को मंजूरी के लिए लोकसभा में रखा। पास होने के बाद इसे अयोध्या अधिनियम के नाम से जाना गया।
क्या कहा था गृहमंत्री ने
बिल पेश करते समय तत्कालीन गृहमंत्री चव्हाण ने कहा था, "देश के लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की भावना को बनाए रखना जरूरी है।" ठीक यही तर्क बीजेपी और आरएसएस के नेता भी दे रहे हैं। अयोध्या अधिनियम विवादित ढांचे और इसके पास की जमीन को अधिग्रहित करने के लिए लाया गया था। नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि के साथ इसके चारों तरफ 60.70 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी। इसे लेकर कांग्रेस सरकार की योजना अयोध्या में एक राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं के निर्माण की थी।
बीजेपी ने अयोध्या अधिनियम का किया था विरोध
बीजेपी ने नरसिम्हा राव सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था। बीजेपी के तत्कालीन उपाध्यक्ष एसएस भंडारी ने इस कानून को पक्षपातपूर्ण, तुच्छ और प्रतिकूल बताते हुए खारिज कर दिया था। बीजेपी के साथ मुस्लिम संगठनों ने भी इस कानून का विरोध किया था।
सुप्रीम कोर्ट से राय भी मांगी थी कांग्रेस सरकार ने
नरसिम्हा राव सरकार ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से भी इस मसले पर सलाह मांगी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या राम जन्भूमि बाबरी मस्जिद के विवादित जगह पर कोई हिंदू मंदिर या कोई हिंदू ढांचा था। 5 जजों (जस्टिस एमएन वेंकटचलैया, जेएस वर्मा, जीएन रे, एएम अहमदी और एसपी भरूचा) की खंडपीठ ने इन सवालों पर विचार किया था लेकिन कोई जवाब नहीं दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या एक्ट 1994 की व्याख्या की थी। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर विवादित जगह के जमीन संबंधी मालिकाना हक (टाइटल सूट) से संबधित कानून पर स्टे लगा दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जब तक इसका निपटारा किसी कोर्ट में नहीं हो जाता तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन पर एक राम मंदिर, एक मस्जिद एक लाइब्रेरी और दूसरी सुविधाओं का इंतजाम करने की बात का समर्थन किया था लेकिन यह भी कहा था कि यह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है। इस तरह अयोध्या एक्ट व्यर्थ हो गया।
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