मां दुर्गा का नवां रूप हैं मां सिद्धिदात्री। नवरात्रि के आखिरी दिन यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री (Siddhidatri) की पूजा की जाती है। इस बार नवमीं 18 अक्टूबर को है। इस दिन भी कई भक्त अपने घरों में कंजकों को बिठाते हैं। और उन्हें भोजन कराते हैं।
मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि एवं कथा
कहा जाता है कि भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही आठ सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं। इन्हीं माता की वजह से भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर नाम मिला, क्योंकि सिद्धिदात्री के कारण ही शिव जी का आधा शरीर देवी का बना। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि जिस प्रकार इस देवी की कृपा से भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति हुई ठीक उसी तरह इनकी उपासना करने से बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
कमल पर विराजमान चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में लिपटी होती हैं। इनके चारों हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल रहता है. सिर पर ऊंचा सा मुकूट और चेहरे पर मंद मुस्कान ही मां सिद्धिदात्री की पहचान है।
घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर दें। साथ ही नवमी पूजने वाले कंजकों और निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही खुद खाएं।