अमृतसर हादसा: कमिश्नर ने मरने वालों को ही गुनहागार घोषित कर दिया, 60 मौतें हुईं थीं | NATIONAL NEWS

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। विजयदशमी के दिन हुआ अमृतसर हादसे में जिम्मेदारी सीधी और सपाट थी। कार्यक्रम के आयोजक और रेल विभाग के स्थानीय अधिकारी, जांच में तो केवल नाम दर्ज किए जाने थे परंतु जांच रिपोर्ट में मरने वाले लोगों को ही गुनहागार घोषित कर दिया गया। रेलवे सुरक्षा आयुक्त एस के पाठक ने यह रिपोर्ट तैयार की है। बता दें कि इस हादसे में 60 लोगों की मौत हो गई थी। 

मुख्य रेलवे सुरक्षा आयुक्त एस के पाठक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘तथ्यों और साक्ष्यों पर सावधानी पूर्वक गौर करने के बाद मैं इस अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 19 अक्टूबर को शाम छह बजकर 55 मिनट पर फिरोजपुर मंडल के अमृतसर के निकट जौड़ा फाटक पर हुआ ट्रेन हादसा उन लोगों की लापरवाही का नतीजा है जो दशहरा का मेला देखने के लिए पटरी पर खड़े थे। रिपोर्ट में उन्होंने दुर्घटना को "रेलवे लाइन के पास जनता की ओर से काम करने में त्रुटि" के रूप में रखा गया है और भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं से बचने के लिए कई सिफारिशें की हैं।

क्या हुआ था हादसे के दिन
यह बेहद दर्दनाक हादसा था। एक ट्रेन 100 की रफ्तार से दनदनाती हुई आई और रावण दहन देख रहे 60 लोगों को 10 से 12 सेकेंड के अंदर काटती हुई चली गई। इस घटना में प्रशासनिक लापरवाही के अलावा रेल प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे थे लेकिन जांच में सबको क्लीनचिट दे दी गई। 

कौन-कौन और क्यों है जिम्मेदार
आयोजक: क्योंकि उन्होंने प्रबंधन नहीं किया कि दर्शक कहां खड़े होंगे। उनके सुरक्षा इंतजाम क्या  होंगे। आयोजन जब रेल की पटरी के पास हो रहा है तो आयोजकों की जिम्मेदारी थी कि वो सुनिश्चित करें कि कोई पटरी तक ना जाए। वालेंटियर्स तैनात किए जाने थे जो नहीं किए गए। 
जिला प्रशासन: क्योंकि उसने अनुमति दी। अधिकारियों को पता था कि आयोजन रेल की पटरी के पास हो रहा है फिर भी एहतियात नहीं बरती। आयोजन की अनुमति दे दी। कोई शर्त नहीं लगाई। 
पुलिस: क्योकि वो मौके पर मौजूद थी और नागरिकों की जान की रक्षा पुलिस विभाग की पहली जिम्मेदारी है। चाहे नागरिक आत्महत्या ही क्यों ना कर रहा हो। पुलिस को चाहिए था कि वो लोगों को रेल की पटरी तक जाने से रोके। 
रेल विभाग के स्थानीय अधिकारी: क्योंकि उन्हे पता था कि रेल की पटरी के पास एक भव्य आयोजन हो रहा है। उन्हे यह भी पता था कि रेल निकलने का समय और आयोजन का समय एक ही है। वो सतर्कता बरतते तो रेल को घटना स्थल से पहले ही रोका जा सकता था। वो रेल की पटरी के पास सार्वजनिक आयोजन पर आपत्ति जता सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। 

अब क्या हो सकता है
मुख्य रेलवे सुरक्षा आयुक्त की जांच को चुनौती दी जानी चाहिए। 
यह जांच हाईकोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे। 
अब मुख्य रेलवे सुरक्षा आयुक्त की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। 
कहीं ऐसा तो नहीं कि आयुक्त ने किसी विशेष कारण के चलते सभी जिम्मेदारों को क्लीनचिट दे दी। 
इस मामले की जांच हेतु एसटीएफ का गठन होना चाहिए। 
हाईकोर्ट में इसके लिए जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है। 

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