जबलपुर। अच्छी रेंक आने के बावजूद निजी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन से वंचित छात्र अब बीबीए कोर्स करने मजबूर है। अपने नुकसान की भरपाई के लिए छात्र ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों पर 10 करोड़ रूपए का दावा ठोंका है। जस्टिस आरएस झा एवं जस्टिस संजय द्विवेदी की खंडपीठ ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, डीएमई, पीपुल्स मेडिकल कॉलेज, अरबिंदो, आरडी गार्डी, इंडेक्स, एलएन, अमलतास, चिरायू और आरकेडीएफ मेडिकल कॉलेजों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
आधी रात को हुए थे प्रवेश:
खंडवा के रहने वाले प्रांशु अग्रवाल ने याचिका दायर कर बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सामान्य श्रेणी में उसे 720 में से 413 अंक प्राप्त हुए थे। याचिकाकर्ता की और से अधिवक्ता आदित्य संघी ने बताया कि 10 सितंबर 2017 की मध्यरात्रि को मॉप-अप राउंड के दौरान 94 सीटें अयोग्य और नॉन डोमिसाइल छात्रों को बेच दीं गईं। जिन छात्रों को प्रवेश दिया गया उनके अंक याचिकाकर्ता छात्र से कम थे और वे बाहर के छात्र थे।
94 एडमिशन हुए थे निरस्त:
हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में 94 एडमिशन को अवैध पाते हुए निरस्त करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट के फैसले को सरकार और निजी मेडिकल कॉलेजों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुको ने भी एडमिशन को अवैध करार दिया, लेकिन यह कहते हुए छात्रों को पढऩे की अनुमति दे दी कि उन्होंने आधा साल पढ़ाई पूरी कर चुके थे। हालांकि सुको ने वंचित छात्रों को नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा पाने छूट दी थी। प्रांशु का कहना है कि उनका हक मारकर अयोग्य छात्रों को प्रवेश देने में निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ डीएमई भी जिम्मेदार हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि हर्जाने की कुछ राशि डीएमई के निजी एकाउंट में से काट कर उसे अदा की जाए।