भोपाल। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत निर्धन बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने का नियम है। इसके तहत 2018-19 के लिए प्रदेश भर में 4 लाख 11 हजार सीटों पर दाखिला दिलाने का लक्ष्य रखा। ढाई लाख बच्चों की लॉटरी निकाली गई, लेकिन इनमें 50 फीसदी बच्चों को अपात्र घोषित कर दिया गया। यही नहीं खाली सीटें भरने के लिए दूसरे चरण की काउंसलिंग भी नहीं कराई और फाइल दबा दी गई। इस तरह 3 लाख से ज्यादा गरीब बच्चों का स्कूल में एडमिशन ही नहीं होने दिया गया। शर्मनाक तो यह है कि इसके बाद कहा जा रहा है कि बच्चों पर खर्च होने वाले 70 करोड़ 84 लाख रुपए बचा लिए गए।
जानकारी के मुताबिक पहले चरण की काउंसलिंग के बाद आरटीई के तहत 1 लाख 61 हजार सीटें खाली हैं। अधिकारी बताते हैं कि दूसरे चरण की काउंसलिंग के लिए विभाग की ओर से शासन के पास प्रस्ताव गया था, लेकिन शासन ने काउंसलिंग कराने से इंकार कर दिया। आरटीई के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए शासन द्वारा ऑनलाइन लॉटरी निकाली जाती है। इसी के तहत प्रदेश में 2 लाख 50 हजार बच्चों की लॉटरी निकाली गई। जबकि शिक्षा विभाग ने इस साल निजी स्कूलों में 4 लाख 11 हजार सीटों पर दाखिला दिलाने का लक्ष्य रखा था। इधर, जिले से 6 हजार बच्चों की लॉटरी निकाली गई, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 हजार बच्चों का एडमिशन हो पाया है।
ये है फैक्ट फाइल
26 हजार प्राइवेट स्कूल आरटीई के दायरे में।
4 लाख 11 हजार सीटें आरटीई के लिए आरक्षित।
2 लाख 50 हजार बच्चों की लॉटरी निकाली गई।
1 लाख 5 हजार 95 बच्चों को नर्सरी में एडमिशन दिया गया।
यानी सरकार ने केवल 25 प्रतिशत बच्चों को एडमिशन दिए।
75 प्रतिशत गरीब बच्चों को अच्छी पढ़ाई नसीब नहीं हो पाई।