दीपावली पर बहुत से लोगों ने ई कामर्स द्वारा अपनों को उपहार भेजे | यह धंधा भारत में करोड़ों ला चल रहा है |उत्पाद के नकली होने और किसी चीज के स्थान पर कुछ और भेजने की कई शिकायतें सामने आई हैं | 'लोकल सर्किल्स' नामक संस्था द्वारा कराये गये एक ताजा सर्वेक्षण से पता चलता है कि ई-कॉमर्स के जरिये बेचे जा रहे हर पांच में से एक उत्पाद नकली है| अगर कोई वस्तु सौंदर्य प्रसाधन, इत्र आदि श्रेणी का है, तो फिर इसके नकली होने की आशंका सबसे ज्यादा है|
संस्था द्वारा किये गये सर्वेक्षण के मुताबिक ई-कॉमर्स की ज्यादातर महत्वपूर्ण साइटों पर २० से ३७ प्रतिशत नकली उत्पाद बेचे जा रहे हैं| त्योहारी खरीद के मौसम में ई-कॉमर्स की वेबसाइटों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए उत्पादों पर बड़ी आकर्षक पेशकश की थी | इस माहौल में नकली उत्पाद के शिकार ग्राहकों की संख्या भी बढ़ी है| हालांकि अपनी और ब्रांड की साख को बचाये रखने के लिए बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां सावधानी बरतने की कोशिश करती हैं, लेकिन उनके इंतजाम कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं|
इन दिनों ई-कॉमर्स के बाजार का तेज प्रसार है| ऑनलाइन खरीद-बिक्री में जवाबदेही का स्वायत्त ढांचा खड़ा करने के लिए नियमन के साथ ग्राहकों में पर्याप्त जागरूकता भी जरूरी है| ऐसे ढांचे के बगैर फिलहाल हमें इसी बात से संतोष करना होगा कि अपनी कमियों और खामियों को सुधारने की क्षमता बाजार में है| यह उम्मीद भी गलत नहीं है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा में टिके रहने और अपने बाजार का विस्तार करने के लिए ई-कॉमर्स में सक्रिय कंपनियां खुद ही नकली सामानों की बिक्री पर रोक लगाने की कोशिश करेंगी| इंटरनेट, स्मार्ट फोन और डिजिटल भुगतान सुविधाओं की बढ़ोतरी के साथ ई-कॉमर्स के व्यापक होते जाने की संभावनाएं बलवती हैं| आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों के बढ़ने में भी इनका अहम योगदान है|
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में ई-कॉमर्स के बाजार का आकार २०१७ ३८ अरब डॉलर का था | जिसके २०२० तक ६४ अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है| यह बाजार अभी ५१ प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो कि दुनिया में किसी भी देश से ज्यादा है|कोई भी ई-कॉमर्स साइट नहीं चाहेगी कि ग्राहकों में उसकी नकारात्मक छवि बने और इस बड़ते माहौल में वह पीछे रह जाये| ग्राहकों को भी खरीदारी करते समय, खासकर ज्यादा छूट या कैशबैक के साथ बेची जा रही चीजों के मामलों में, अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए | संबद्ध सरकारी संस्थाओं को भी निगरानी और शिकायतों पर अधिक गंभीर होने की जरूरत है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।