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इस योजना को तीन साल बीत गए हैं लेकिन “उदय” को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है। उदय का अनिवार्य लक्ष्य था सरकारी बिजली कंपनियों की वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करना। सरकार का यह हस्तक्षेप बिल्कुल समय पर हुआ था क्योंकि मूल्य सुधारों (यानी यह पक्का करना कि बिजली कीमतें उत्पादन और वितरण लागत के साथ सुसंगत बनी रहें) की कमी और परिचालन क्षेत्र की कमियों (उदाहरण के लिए समेकित तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान) की वजह से बिजली कंपनियां भारी वित्तीय दबाव की शिकार हो गईं। ऋण इतना अधिक हो चुका था कि कई बिजली कंपनियों ने उत्पादकों से जरूरत से कम बिजली खरीदी क्योंकि हर अतिरिक्त यूनिट के साथ उनका नुकसान बढ़ता जा रहा था। इसका असर बिजली उत्पादकों और ग्राहकों दोनों पर पड़ा। उपभोक्ता प्रति यूनिट बिजली की जो कीमत चुका रहे थे वह वित्तीय व्यवहार्य कीमत से कमी थी। इसकी कीमत उनको बाधित बिजली आपूर्ति के रूप में चुकानी पड़ती। वहीं दूसरी ओर बिजली उत्पादकों को नुकसान उठाना पड़ता क्योंकि उनके उत्पादन की मांग में कमी आती। इससे उनका वित्तीय गणित गड़बड़ा जाता। उदय योजना के अधीन बिजली कंपनियों का ऋण संबंधित राज्य सरकारों के हवाले कर दिया गया। बदले में उम्मीद यह थी कि वे मूल्य और परिचालन में जरूरी सुधार लाकर हालात व्यवस्थित कर देंगे।
राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त एवं नीति संस्थान का हालिया विश्लेषण बताता है कि उदय ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर बहुत अधिक दबाव बनाया जबकि बिजली कंपनियों के नुकसान में कोई कमी नहीं आई है और न ही उनकी परिचालन किफायत में सुधार हुआ है। उदय पोर्टल पर दिए गए आंकड़े बताते हैं कि सभी प्रतिभागी राज्यों का औसत एटीऐंडसी नुकसान जो करीब १५ प्रतिशत होना चाहिए था, वह फिलहाल औसतन २५.४१ प्रतिशत है। निश्चित तौर पर कई राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब में एटीऐंडसी का नुकसान अभी भी बढ़ रहा है। इसी प्रकार वितरण बदलाव (मीटरिंग और स्मार्ट मीटरिंग) के बारे में जानकारी देने वाले २२ राज्यों की बात करें तो उनका प्रदर्शन भी मानक से काफी कमजोर है। वित्तीय संकेतकों के मामले में भी प्रदर्शन वैसा ही है। मसलन, कई राज्यों में एसीसी-एआरआर अंतर (औसत लागत और औसत राजस्व का अंतर) भी बढ़ा है। जाहिर सी बात है कि अगर उदय को कारगर होना है तो जमीनी सुधारों के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ये सुधार मूल्यों और परिचालन दोनों स्तर पर होने चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बिजली उत्पादकों और उपभोक्ताओं की दिक्कतें जारी रहेंगी। उदय अस्त होती योजना दिख रही है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।