नाम वापिसी के बाद भी 2932 उम्मीदवार मध्यप्रदेश विधान सभा के लिए होने जा रहे चुनाव के मैदान में हैं | कल नाम वापसी का अंतिम दिन था भाजपा और कांग्रेस अपने लोगों को समझाने बुझाने मनाने चमकाने में लगी रही | जो बैठ गये सो बैठ गये जो बागी बनकर खड़े है, आज उन्हें दोनों पार्टी चलता कर देंगी | इन्हीं बागियों में से जो जीतकर आएगा उसकी भूमिका नई सरकार में महती होगी | चाहे परिणाम भाजपा के पक्ष में जाएँ या कांग्रेस के पक्ष में| भाजपा को उखाड़ने लिए एक-एक सीट का संघर्ष कर रही कांग्रेस चुनावी माहौल में गरमी ला सकती थी, पर ऐसा नहीं हुआ बड़े नेता कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह मैदान से बाहर हैं | राजस्थान में बड़े नेताओं को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है |
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के ये बड़े नेता अपने-अपने गढ़ में अपने-अपने पट्ठों का हौसला बढा रहे हैं | इस बार जीते लोगो के सहारे यह तय होगा कि सेहरा किसके सर बंधे | भाजपा में भी सर जरुर दिख रहा है, पर सेहरे का साइज ऐन वक्त पर बदल भी सकता है |
प्रत्याशी चयन से ठीक पहले कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दी थी | वजह, कांग्रेस का सीएम पद को लेकर चल रहा सस्पेंस फार्मूला रहा | कांग्रेस, कमलनाथ,दिग्विजय और सिंधिया को लेकर कोई पावर स्ट्रगल चुनाव से पहले नहीं चाहती | कांग्रेस हाईकमान, चुनावी रिजल्ट तक इस बात का खुलासा नहीं करना चाहता कि मध्यप्रदेश में अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है तो उसका मुख्यमंत्री कौन होगा? चुनाव मैदान में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में एक सुरेश पचौरी भी हैं| उनके समर्थक मानते है अगर सुरेश पचौरी और कांग्रेस दोनों जीतते हैं तो पचौरी मुख्यमंत्री पद के लिए अपने टेसू को अडा सकते हैं |
राहुल गाँधी सार्वजनिक रूप से कहते हैं कमलनाथ एक अनुभवी चेहरा हैं और ज्योतिरादित्य चार्मिंग फेस| कांग्रेस को चुनाव में दोनों की ज़रूरत है| सुरेश पचौरी , अजय सिंह के नाम सिर्फ उनके अपने लोगों में चल रहे हैं | दिग्विजय सिंह कभी भी ढाई घर की चाल चल सकते हैं, टिकट वितरण में उन्होंने अपनी जादूगरी दिखा ही दी है | इसी चाल में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव को भी बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ उतारने का फैसला अंतिम क्षणों में लिया गया| प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद यादव नाराज़ चल रहे थे| प्रदेश में उनकी पहचान एक ओबीसी लीडर ज्यादा नहीं है| कांग्रेस ने शिवराज के ख़िलाफ उन्हें मैदान में उतार कर दो मैसेज दिये है कि वे बड़े कद के नेता है, लेकिन मुख्मंत्री कौन होगा यह तय नहीं है |
भाजपा और कांग्रेस दोनों चुनाव में पूरी ताकत झोंक रही है |२०१९ के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा और संघ अपनी रणनीति बना चुका है| कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा, सिंधिया के गढ़ गुना और दिग्विजय सिंह के गढ़ राजगढ़ पर भाजपा और संघ की निगाहें लगी हैं| कांग्रेस भी अपने बड़े नेताओं को उसी दौरान मैदान में उतारेगी | विधानसभा चुनाव उसकी रिहर्सल है |
अब सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाई तो क्या होगा? क्या कमलनाथ और सिंधिया वापस दिल्ली की राजनीति में लौट जाएंगे और प्रदेश में अजय सिंह जो भी होंगे, होंगे? कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है,कमलनाथ को ही २०१९ का चुनाव भी करवाना है | मोदी के रथ को मध्यप्रदेश में रोकने की ज़िम्मेदारी भी कमलनाथ की है | दिग्विजय सिंह की भूमिका इस विधानसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे | हाई कमान दोनों पार्टियों में हैं, उसके चेहरों की पसंदगी नापसंदगी से मुख्यमंत्री इस बार नहीं बनेगा, इस बार पट्ठों के जीतने से तय होगा | मध्यप्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।