संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को देखें तो भुखमरी के शिकार अधिकांश लोग विकासशील देशों में रहते हैं, और इनमें भी सर्वाधिक संख्या भारतीयों की है। वैसे भुखमरी के लिए ढ़ेर सारे कारण जिम्मेदार हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण कारण जरुरतमंदों तक अनाज का न पहुंचना और अन्न की बर्बादी है। भारत की ही बात करें तो अन्न बर्बाद करने के मामले में यह दुनिया के संपन्न देशों से भी आगे है। आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल उतना अन्न बर्बाद हो जाता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल पैदा किए जाने वाले भोज्य पदार्थ का 40 प्रतिशत हिस्सा बर्बादी का भेंट चढ़ जाता है।
विकास के नित-नए उपायों व प्रयासों के बीच ग्लोबल हंगर इंडेक्स २०१८ की ताजा रिपोर्ट में ११९ देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का १०३ वें पायदान पर होना इस तथ्य को रेखांकित करता है कि देश में भूख से निपटने की चुनौती अभी भी बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश से भी पीछे है। रिपोर्ट के मुताबिक पड़ोसी देश चीन को २५ वीं, बांग्लादेश को ८६ वीं, नेपाल को ७२ वीं श्रीलंका को ६७ वीं और म्यांमार को ६८ वीं रैंक मिली है। इन आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो भारत की रैंकिंग सुधरने के बजाए लगातार गिर रही है जिससे कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो २०१४ में भारत ५५ वें पायदान पर था जो कि २०१५ में खिसककर ८० वें, २०१६ में ९७ वें और २०१७ में १०० वें पायदान पर आ गया। इस रिपोर्ट में भारत को उन ४५ देशों की सूची में रखा गया है जहां भुखमरी की स्थिति अत्यंत गंभीर है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के गत वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर वर्ष तकरीबन ३००० से अधिक लोगों की मौत भूख से हो रही है और मरने वालों में सर्वाधिक संख्या बच्चों की होती है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष २०१५ में ७७ करोड़ लोग भूख पीड़ित थे जो २०१६ में बढ़कर ८१ करोड़ हो गए। इसी तरह २०१५ में अत्यधिक भूख पीड़ित लोगों की संख्या ८ करोड़ और २०१६ में १० करोड़ थी, जो २०१७ में बढ़कर १२.४ करोड़ हो गयी है। भारत के पास भुखमरी से निपटने का ठोस रोडमैप नहीं है।
अन्न बर्बाद करने के मामले में भारत दुनिया के संपन्न देशों से भी आगे है। आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल उतना अन्न बर्बाद हो जाता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल पैदा किए जाने वाले भोज्य पदार्थ का ४० प्रतिशत हिस्सा बर्बादी का भेंट चढ़ जाता है। अर्थात हर साल भारत को अन्न की बर्बादी से तकरीबन ५० हजार करोड़ रुपए की चपत लगती है। साथ ही बर्बाद भोजन को पैदा करने में २५ प्रतिशत स्वच्छ जल का इस्तेमाल होता है और साथ ही कृषि के लिए जंगलों को भी नष्ट किया जाता है। इसके अलावा बर्बाद हो रहे भोजन को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत होती है। यही नहीं बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है। खाद्य वैज्ञानिकों की मानें तो कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूं, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान में प्रोटीन की कमी होने लगी है।केंद्र और राज्यों इस विषय पर सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ सोचना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।