बख्शिए, इन महापुरुषों को | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
चुनाव जो न कराएँ थोडा है | चुनाव के भाषणों में आज नेहरु और पटेल को आमने सामने खड़े करने की कोशिश इस हद तक हो रही है की वे एक दूसरे के  प्रतिद्न्दी मालूम होने लगे है | भले हीइन दिनों  नेहरू और पटेल के बीच तनाव के किस्से गढ़े जा रहे हों,लेकिन नेहरु और पटेल के संवादों में एक दूसरे के लिए सम्मान ही झलकता है। इसकी झलक उन खतों में मिलती है, जिसे इन दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को भेजा था।  

एक अगस्त 1947, नेहरू ने पटेल को खत लिखा, कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूँ। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं। 3 अगस्त 1947, सरदार पटेल ने नेहरू को जवाब दिया, आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद। एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 साल की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी। आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है। हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है। आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं।

इतिहासकार बिपिन चंद्र की किताब आजादी के बाद का भारत के मुताबिक, १९५० में पटेल ने एक भाषण में कहा था- हम एक सेकुलर राज्य हैं। यहां हर मुसलमान को यह महसूस करना चाहिए कि वो भारत का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसके हक बराबर के हैं। अगर हम उसे ऐसा महसूस नहीं करा सकते, तो हम अपनी विरासत और देश के लायक नहीं हैं।

आज भले ही चुनावी भाषणों में नेहरु और सरदार वल्लभभाई पटेल को लेकर कई तरह के किस्से गढ़े जा रहे हों लेकिन इन किस्सों का उनके विचारों से मेल दिखाई नहीं देता। सरदार पटेल की विशालकाय मूर्ति को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी खासतौर पर इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि उन्होंने आजादी के वक्त देशभर की रियासतों को एक करने का काम किया। महापुरुष किसी एक पार्टी के नहीं होते वह देश के नेता होते हैं | हर चुनावी सभा नेहरु और पटेल के उल्लेख के बगैर पूरी नहीं हो रही है | वे तथ्य भी उछाले जा रहे हैं जी किसी व्यक्ति के निजी जीवन के अंश रहे हैं | यह क्या दर्शाता है?

सरदार नेहरू को अपना नेता मानते थे, और खुद को वफादार सिपाही, ऐसे में पटेल, नेहरू से बेहतर प्रधानमंत्री होते कहने वाले लोग आखिर सत्य पर असत्य की स्याही उड़ेल कर सरदार को कौन सी विरासत का नायक बनाना चाहते हैं? यह सब करने से से हम किसी महापुरुष का प्रशस्ति गान नहीं करते बल्कि अवमानना करते हैं | इससे बचना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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