तेल की गिरती कीमत, रुपया और रिजर्व बैंक | EDITORIAL by Rakesh Dubey

कच्चे तेल की कीमतें लगातार कम हो रही हैं, इससे रुपये में मजबूती आने लगी है । बैंकों के नतीजे भी कह रहे हैं कि फंसे हुए कर्ज से मुकाबला करने के मामले में कुछ प्रगति हुई है। इसके विपरीत भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच का विवाद निरंतर जारी है साथ ही वैश्विक वृद्धि दर में धीमापन आने से नई चिंताएं सर उठाने लगी हैं। अमेरिका और भारत में राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावनाओं ने भी चिंता को जन्म दिया है। अब तक कच्चे तेल के बाजार ने ईरान पर नए प्रतिबंध को लेकर भारत को रियायत दी है। भारत उन आठ देशों में से एक है जिन्हें ईरान के साथ कारोबार को लेकर सशर्त रियायत प्रदान की है। इससे कच्चे तेल की कीमतों में १५ प्रतिशत की गिरावट आई है।

 इस बीच रिजर्व बैंक और सरकार के रिश्तों को लेकर चर्चा का सिलसिला अभी भी जारी है। आरबीआई अधिनियम की धारा 7 को लागू करके विवाद उत्पन्न करने और रिजर्व बैंक से उसके भंडार का एक बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने को कहना गवर्नर के इस्तीफे के हालात भी पैदा कर सकता है। आज आयोजित रिजर्व बैंक की बोर्ड बैठक इन हालात को हल करने में अहम भूमिका निभा सकती है। रिजर्व बैंक से उच्च लाभांश की मांग ने राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी से जुड़ी चिंता पैदा की है। हालांकि कच्चे तेल की कम कीमतें चालू खाते के घाटे को नियंत्रण में रखने में सहायता करेंगी।

केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश बैंकों के फंसे हुए कर्ज में कमी आ रही है। रेटिंग एजेंसी का कहना है कि वर्ष २०१७-१८ की चौथी तिमाही में अग्रिम एनपीए १०.१६ प्रतिशत के उच्च स्तर पर था जो हालिया दूसरी तिमाही में घटकर ९.४१ प्रतिशत रह गया। फंसे हुए कर्ज के लिए प्रावधान भी २०१७-१८ की चौथी तिमाही में ३०  बैंकों के लिए १.२३ लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर था। चालू वर्ष की पहली तिमाही में यह ५७,६०० करोड़ रुपये रह गया तथा दूसरी तिमाही में यह और घटकर ५०,७०० करोड़ रुपये हो  गया। भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और ऐक्सिस बैंक के एनपीए अनुपात में कमी आई। स्टेट बैंक ने दूसरी तिमाही में मुनाफे की घोषणा के साथ बदलाव का संकेत दिया है। इससे पहले की तीन तिमाहियों में उसने लगातार घाटा होने की बात कही थी। 

अब राजनीतिक समीकरणों का भी प्रभाव नजर आने लगा है। अगले कुछ दिनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनसे यह संकेत निकलेगा कि वर्ष २०१४  की तुलना में नागरिकों के मिजाज में कितना बदलाव आया है। इसी से निवेशक वर्ष २०१९ के अप्रैल-मई महीने में होने वाले आम चुनाव के नतीजों के बारे में अनुमान लगाएंगे 

बाजार सूचकांक बीते एक पखवाड़े में ५.५ प्रतिशत ऊपर हैं, परंतु कारोबार का आकार बहुत सीमित है। चुनाव २०१९ के पहले आर्थिक दृश्य बदल सकता है | रिजर्व बैंक की आज होने वाली बैठक महत्वपूर्ण है इससे ही संकेत निकलेगा देश कहाँ जायेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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