इस बार मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव में शुचिता की बात शायद ताक पर रख दी गई है, विधानसभा चुनाव २०१८ का मतदान २८ नवम्बर को होगा | महात्मा गाँधी के सिद्धांत की दुहाई देने वाले दलों, चुनाव की नजदीकी और शराब बिक्री के बीच जैसे कोई होड़ लगी है | मतदान की तारीख जैसे- जैसे नजदीक आ रही है मध्यप्रदेश में शराब की बिक्री और खपत बढ़ती जा रही है। ये बात सरकारी आंकड़े जाहिर करते हैं | गैर सरकारी आंकड़े तो कई गुना ज्यादा है | दोनों बड़े दलों के लोगों के नाम इससे जुड़ रहे हैं | इस सरकारी और गैर सरकारी खरीद फरोख्त का आंकड़ा रिकार्ड तोड़ रहा है |सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल नवंबर में शराब की बिक्री बढ़ गई है। कहने को शराब की बिक्री के रिकॉर्ड पर चुनाव आयोग की भी नजर है।
गैर सरकारी आंकड़ों का मिलना और उनका प्रमाणीकरण मुश्किल है | पर उपलब्ध सरकारी आंकड़े बताते हैं इस साल चुनावी महीने नवंबर में हर दिन औसतन ६४ हजार लीटर शराब की खपत बढ़ी है। पिछले साल अर्थात नवंबर २०१७ में शराब की खपत ७४.७३ लाख लीटर थी। सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि नवंबर का महीना खत्म होने में एक सप्ताह शेष है और आंकड़ा अब तक ७५.५१ लाख लीटर शराब बिक्री का आकंडा है।जिसके और आगे बड़ने की सम्भावना है |इस विषय के जानकार गैर सरकारी आंकड़ा इससे चौगुना बता रहे हैं |
वैसे चुनाव आयोग ने शराब की अवैध आपूर्ति की रोकथाम के लिए पूरे राज्य में 14 जगह नाके बनाए हैं। इन नाकों पर जाँच भी हो रही है और रात के अँधेरे में शराब का वैध अवैध परिवहन भी | चुनाव आयोग के निर्देश पर तैनात अमला अब तक ४ लाख लीटर से अधिक अवैध शराब जब्त कर चुका है |चुनाव की घोषणा के बाद से आदर्श चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के तहत अब तक कुल ५१.२९ करोड़ रुपये से अधिक की अवैध नगदी और सामग्री जब्त की गई है। यह राशि जिस किसी उद्देश्य के लिए यहाँ से वहां की जा रही थी उसमे शराब की खरीदी के भुगतान और हवाले भी है | वैध और अवैध शराब के उत्पादन पर किसी की नजर नहीं है | उसके लिए कच्चे माल और रसायन की खपत पर कोई जाँच और प्रतिबन्ध नहीं है | अधिकाँश बड़े डिस्टलर और उनके राजनीतिक रसूख चुनाव आयोग के निर्देश का पालन नहीं कर रहे है | यह बात तो साफ है कि शराब की बिक्री बढ़ी है तो कोई ना कोई इस शराब को खरीद ही रहा होगा। शराब की बढ़ी बिक्री से राजनीतिक गर्मी भी बढ़ी है। प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एक दूसरे पर शराब के जरिये मतदाताओं को लुभाने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन गाँधी के नाम को रटने वालों इन दोनों में किसी की भी मंशा इसे रोकने की नहीं है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।