भारत में चिकित्सकीय उपकरण के नकारात्मक प्रभाव की बात करें तो स्टेंट लगाने के बाद मरीज के निधन के मामले इस वर्ष अब तक 556 हो चुके हैं।इसी से जुडा मामला उन उपकरणों का है जिन्हें वापस मंगाया गया। बीते दो वर्ष में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (यूएसएफडीए) ने 117 उपकरणों को वापस मंगाया क्योंकि उनका प्रभाव नकारात्मक पाया गया। भारत में संभवत: ऐसे आधे या अधिक उपकरण अभी भी बाजार में हैं। चिकित्सा उपकरण निर्माता ऐसे चलन से हटाए गए उपकरणों को खरीदने वालों का पता न लगाकर अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रहे हैं। कूल्हे के प्रत्यारोपण के विषाक्त होने के मामले इसी सिलसिले में आते हैं। उपकरण हटाए जाने के मामलों में वे उचित हर्जाने का भुगतान भी नहीं करते।
चिकित्सा उपकरण उद्योग इंजीनियरिंग और औषधियों का विशिष्ट मिश्रण है। इनके माध्यम से ऐसी मशीन तैयार की जाती हैं जिनका इस्तेमाल मनुष्य के शरीर में चिकित्सकीय सहायता पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसके लिए न केवल सावधानीपूर्वक नियमन की आवश्यकता है बल्कि उच्च नैतिक मानक अपनाने भी जरूरी हैं। भारत में ये दोनों नदारद नजर आते हैं। खबरों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर उपकरणों की वापसी की प्रक्रिया का अनुपालन भारत में नहीं किया जाता। यह बात खासतौर पर निराश करने वाली है।
हद तो यह है कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संस्थान वैश्विक या भारतीय बाजारों से वापस मंगाए गए इन उपकरणों की कोई सार्वजनिक सूची तक नहीं रखता। यह अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करने का अप्रत्याशित मामला है। अगर नियामक कदम उठाने की इच्छा नहीं रखते हैं तो भी उनको कम से कम इस बारे में पूरी सूचना और जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए ताकि संबंधित मरीज, उनके रिश्तेदार या अन्य जागरूक नागरिक अपने दम पर जरूरी कदम उठा सकें। इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (आईपीसी) के आंकड़े भी अधूरे हैं जो चिंतित करने वाली बात है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि रिपोर्टिंग मानक अत्यंत निम्न हैं।
गलत और गड़बड़ चिकित्सकीय उपकरण के मामलों में अगर खासतौर पर बड़े शहरों के चिकित्सकों और चिकित्सा केंद्रों की बात करें तो बहुत संभव है कि इनकी रिपोर्टिंग इसलिए नहीं की जाती हो क्योंकि इससे दोनों के संबंधों पर असर पड़ सकता है। चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों और चिकित्सा पेशेवरों के बीच के करीबी रिश्ते काफी हद तक दवा कंपनियों और चिकित्सकों के रिश्तों जैसे ही हैं। इनकी वजह से उत्पन्न समस्याएं सबने देखी हैं।
इस क्षेत्र में बड़े बदलावों की आवश्यकता है। भारतीय चिकित्सा परिषद एक नखदंत विहीन संस्थान है। अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह आईपीसी और सीडीएससीओ, दोनों को पुनर्जीवित करे और उनको अधिक संसाधन तथा प्रत्यक्ष अधिकार प्रदान करे। कहीं अधिक गहन प्रश्न यह है कि क्या यह दुरुपयोग तृतीयक स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था का परिणाम है जो निजी क्षेत्र पर बहुत अधिक निर्भर है।इस क्षेत्र में बड़ा और जीवंत शासकीय दखल ही कमजोर नियमों, सूचनात्मक विसंगतियों आदि की समस्या को दूर कर सकता है। खासतौर पर चिकित्सा उपकरण, पैथॉलजी टेस्ट आदि के क्षेत्र में तो यह अत्यंत आवश्यक है। सरकार को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा की अपनी योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि इसमें काफी हिस्सा स्वास्थ्य सेवा के उस क्षेत्र को जाता है जो बहुत विश्वसनीय नहीं साबित हुआ है।सरकार को कुछ करना होगा विषय गंभीर है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।