प्रदेश में विधानसभा चुनाव हेतु उम्मीदवार चयन की जो इबारत कांग्रेस और भाजपा ने लिखी है उससे जो बातें स्पष्ट होकर रेखांकित हो रही है। उनमें पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र की समाप्ति, हाई कमान जैसी संस्थाओं का मूक बहिर हो जाना, कार्यकर्ताओं से उपर आयाराम-गयाराम, इससे भी उपर करोडपतियों को जगह, सर्वे और रायशुमारी के नाम पर धोखे जैसी बातें उभर कर सामने आई हैं। इस सबसे जो चित्र उभरता है, वो साफ़ करता है कि राजनीति सेवा का माध्यम नहीं अकूत लाभ धंधा है, जिसमें अकल्पनीय तरीके से धन कमाया जा सकता है और जन प्रतिनिधि के लबादे में काली कमाई छिपाई जा सकती है।
इसी एक कारण से जीवन के अंतिम समय तक विधायकी, मेरे बाद मेरे अपने, फिर मेरे प्रेमी मेरी प्रेमिका, गुंडे- बदमाश और सबसे अंत में स्वच्छ छबि वाला कर्मठ कार्यकर्ता को टिकट देने का चलन बन गया है। अमित शाह और राहुल गाँधी दोनों ही इस मायाजाल को तोड़ने में नाकाम रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही गुटबाज़, अडीबाज़ सफल हो गये है। 2019 में गठित होने वाली विधानसभा का चित्र भयावह है। कुछ भी हो उसके जनोन्मुखी होने की गुंजाइश कम है। पहले भी इन घटिया समीकरणों ने सदन चलने ही कहाँ दिया था ? हर बार बुलाया गया विधानसभा का सत्र जैसे तैसे निपटा दिया गया था।
इस बार भी भाजपा और कांग्रेस ने अब तक 376 प्रत्याशी (भाजपा 192 और कांग्रेस 184) घोषित किए हैं। इनमें से 115 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। यानी दोनों ही पार्टियों का सबसे ज्यादा फोकस करोड़पति नेताओं पर रहा। मेहनती निष्ठावान कार्यकर्ताओं से ऊपर जिताऊ उम्मीदवार के नाम पर करोड़पति प्रत्याशी को तवज्जो मिली। हालांकि ये आंकड़ा सिर्फ दो दलों के प्रत्याशियों का है, जबकि सभी दलों के प्रत्याशियों की धन-दौलत का विश्लेषण किया जाये तो ये आंकड़ा दोगुने से ज्यादा मिल सकता है। पिछले चुनाव में सभी दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों में 350 करोड़पति थे।
भाजपा ने अब तक अपने जो प्रत्याशी घोषित किये हैं। इनमें 103 मौजूदा विधायक हैं। इन मौजूदा विधायकों में 77 करोड़पति हैं, इनमे से 27 ऐसे हैं, जो वर्ष 2013 में करोड़पति नहीं थे और पूरे पांच साल राजनीति करने के बाद करोडपति से अरबपति होने के एक दम नजदीक हैं। इनमे बैंकों का ऋण न चुकाने वाले सुरेन्द्र पटवा जैसे मंत्री भी है जो शान से इस बात की घोषणा कर रहे हैं कि वे घोषित रूप से 38 करोड़ के मालिक हैं। सबसे ज्यादा आश्चर्य चकित करने वाला आंकड़ा तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ही घोषित किया है। उन्होंने अपनी करोडपति पत्नी को लाखों रूपये उधार दिए हैं।
कांग्रेस में भी अब तक घोषित 184 प्रत्याशियों में से 53 मौजूदा विधायक हैं। पूर्व विधायकों में 38 करोड़पति हैं, जबकि 13, 2013 में करोड़पति होने की दहलीज पर थे। पिछले पांच साल में करोड़पति हो चुके हैं। अब तक दोनों ही पार्टियां 376 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुकी हैं, इनमें 70 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार या तो करोड़पति हैं, या करोड़पति होने से की कगार पर हैं। घोषित उम्मीदवारों में 156 मौजूदा विधायक हैं, इनमें से 115 करोड़पति हैं। 2013 में 350 करोड़पति प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 86 बीजेपी, 49 कांग्रेस और 6 बीएसपी के ऐसे प्रत्याशी थे, जिनकी औसत संपत्ति 5 करोड़ रुपए थी और 2008 में औसत संपत्ति का आंकड़ा करोड़ था। पांच साल में इन 141 व्यक्तियों की औसत संपत्ति की वृद्धि दर 241 प्रतिशत रही। इसी कारण टिकटों की मारामारी है, वंशवाद है, महंगा चुनाव है और संसदीय कार्य को टालती विधानसभा का विचित्र चित्र दिखता है। फिर भी वोट देना है ? दीजिये, नहीं तो ये छीन भी सकते हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।