भोपाल। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने बताया कि मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व केंद्र में वार्ड पार्षद/पंच से लेकर सांसद तक एक ही दल की सत्ता पर काबिज होने के बाद भी तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो मप्र के पेंशनर एवं कर्मचारी हर वेतनमान व प्रासंगिक भत्तों में ठगे गये हैं। पेंशनरों की बात करे तो छठे व सातवें वेतनमान में 32-32 माह का एरियर महंगाई भत्ते की दो किश्ते मप्र एवं छत्तीसगढ़ राज्य सरकारों की सहमति का शिकार है। कर्मचारियों को केंद्र व राजस्थान में महंगाई भत्ता व गृह भाड़ा भत्ता की तुलना की जाए तो मप्र में आठ से पंद्रह हजार रुपये प्रति माह कम मिल रहे है।
वर्तमान में 2% जुलाई 2018 से महंगाई भत्ता आचार संहिता में उलझ गया है। क्रमोन्नति /समयमान वेतनमान की तुलना करे तो छत्तीसगढ़ में चार स्तरीय वेतनमान लागू है; मप्र में विसंगति पूर्ण तृतीय क्रमोन्नति/समयमान वेतनमान लागू किया है जिसका फायदा भी सभी को नहीं मिल पाया है। सभी संवर्ग के कर्मचारियों की वेतन विसंगति पांचवें वेतनमान से बदस्तूर जारी है। 1995-96 से शिक्षाकर्मी जो अब अध्यापक संवर्ग है इन्हे शिक्षक संवर्ग में लेने का लॉलीपॉप थमाकर शोषण का सिलसिला कायम है।
अगर देखा जाए तो वर्षों से संघर्षरत रहते तुलना की जाए तो, इनके बीस वर्षो से शोषण की बची अरबों रुपए की बहुत बड़ी राशि का ब्याज भी यदि इमानदारी से दे दिया जाता तो भी इनका समाधान संभव था, जो नहीं किया गया। शिक्षक संवर्ग को केंद्रीय वेतनमान से अलग राज्य का मनमाना वेतनमान लागू कर तृतीय क्रमोन्न्नति के नाम पर वो वेतनमान दिया गया जो केंद्र ने 2006 में लागू कर दिया था। केंद्र, राजस्थान व छत्तीसगढ़ की तुलना में म•प्र•के पेंशनर व कर्मचारी छले व ठगे गये है।
विगत सरकारों ने पेंशनरों एवं कर्मचारियों को अंतहीन आंदोलन की अंधी सुरंग में धकेल दिया है। जो आनेवाली सरकारों से जुझते रहेंगें। 2005 से अंशदायी पेंशन का निर्णय अमानवीय व असंवेदनशील है जो बदला जाना चाहिए। सांसद व विधायक के लिए तो पेंशन और जीवन खपाने वाले कर्मचारी को अंशदायी पेंशन अन्यायपूर्ण निर्णय है जिसमें बदलाव की दरकार है।