समस्त ग्रहों में से शनि ही एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो वक्री होने की स्थिति में कुंडली धारक को कुछ न कुछ अशुभ फल अवश्य प्रदान करते हैं फिर चाहे किसी कुंडली में उनका स्वभाव कितना ही शुभ फल देने वाला क्यों न हो। किन्तु वक्री होने की स्थिति में शनि के स्वभाव में एक नकारात्मकता अवश्य आ जाती है जो कुंडली धारक के लिए कुछ समस्याओं से लेकर बहुत भारी विपत्तियां तक लाने में सक्षम होती है।
शनि शुभ हो तो भी नुक्सान होता है
यदि शनि किसी कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फलदायी होकर वक्री हैं तो कुंडली धारक को अपेकक्षाकृत कम नुकसान पहुंचाते हैं तथा ऐसी स्थिति में कुंडली में इनका स्वभाव मिश्रित हो जाता है जो कुंडली धारक को कभी लाभ तो कभी हानि देता है। किन्तु यदि शनि किसी कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फलदायी होकर वक्री हैं तो कुंडली धारक को अपेकक्षाकृत बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
किस राशि में पहुंचकर शनि सबसे ज्यादा नुक्सान पहुंचाते हैं
किसी कुंडली में शनि सबसे अधिक नुकसान तब पहुंचाते हैं जब वे तुला राशि में स्थित हो, सामान्य रूप से अशुभ फलदायी हों तथा इसके साथ ही वक्री भी हों। तुला राशि में स्थित होकर शनि को अतिरक्त बल प्राप्त होता है तथा अशुभ होने की स्थिति में शनि वैसे ही इस अतिरिक्त बल के चलते सामान्य से अधिक हानि करने में सक्षम होते हैं किन्तु ऐसी स्थिति में वक्री होने से उनकी नकारात्मकता में और भी वृद्धि हो जाती है तथा इस स्थिति में कुंडली धारक को दूसरे ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए बहुत भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।