भोपाल। एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्ण आंदोलन को भाजपा के नेता तो निष्प्रभावी बता रहे हैं परंतु भाजपा की मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हाथ पांव फूले हुए हैं। हालात यह है कि NOTA के कहर से भाजपा को बचाने के लिए संघ घर-घर जनसंपर्क कर रहा है। संघ के स्वयं सेवक घर-घर जा रहे हैं और लोगों को उनके वोट का महत्व समझा रहे हैं। हर ज़िले में स्वयंसेवकों की टीम मोर्चा संभाले है। वो घरों में बुजुर्गो को और गली-नुक्कड़ में युवाओं से मतदान की अपील कर रहे हैं। दिन भर 10 से 11 लोगों की टीम घूम-घूम कर प्रचार कर रही है।
संघ ने NOTA से भाजपा को बचाने की बड़ी रणनीति बनाई है। संघ के कार्यकर्ता पहले लोगों से मुलाकात करते हैं और वोट की अपील करते हैं। फिर धीरे से समझाते हैं कि NOTA का कोई फायदा नहीं, क्योंकि NOTA प्रत्याशी नहीं है। बन गिनती में आएगा। इसके बाद हिंदी के समानार्थी शब्दों का उपयोग करते हुए भाजपा को वोट देने की अपील करते हैं। यह भी समझाते हैं कि प्रत्याशी खराब है तो क्या, पार्टी अच्छी है।
2013 में NOTA ने 26 प्रत्याशी हराए थे
2013 के विधानसभा चुनाव में 26 विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे, जहां जीत-हार का अंतर 2500 या इससे कम मत का था। वहीं, नोटा का मिले वोटों की संख्या प्रभावशाली थी। यदि हारने वाले प्रत्याशी के वोटों में नोटा की संख्या जोड़ दी जाए तो परिणाम पलट सकते थे। विधानसभा चुनाव 2013 में 6 लाख 43 हजार 144 मतदाताओं ने मौजदू प्रत्याशियों की जगह नोटा में वोट देकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। सर्वाधिक 39 हजार 235 नोटा के अधिकार का इस्तेमाल छिंदवाड़ा जिले में हुआ था।