भोपाल। 3 नवंबर को सुबह 5.10 मिनट से रमा एकादशी शुरू हो जाएगी। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही महिलाएं व्रत रखकर सौभाग्वती होने और घर की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। एकादशी 4 नवंबर दोपहर 3.13 बजे समाप्त होगी।
पं. दीपेश पाठक ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को रखने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यहां तक कि ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी दूर होते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए यह व्रत सुख और सौभाग्यप्रद माना गया है।
रमा एकादशी का महत्व
पं. पाठक ने बताया कि पुराणों के अनुसार रमा एकादशी व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देती है। इसे करने से व्रती अपने सभी पापों का नाश करते हुए भगवान विष्णु का धाम प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पापहारिणी एकादशी
पापहारिणी एकादशी तिथि के बारे में कौन नहीं जानता है। जैसा कि आप जानते हैं कि तिथियों को पांच भागों में बांटा गया है। उसमें एकादशी को नंदा अर्थात् आनंद देने वाली तिथि होने का गौरव प्राप्त है। एकादशी तिथि को सभी तिथियों में श्रेष्ठ माना जाता है। इसे हरिवासर भी कहते हैं। इस तिथि को नारायण का दिवस कहा जाता है। ऐसे में जब नारायण प्रधान देव हैं तो उनकी तिथि को प्रधान तिथि मानना स्वाभाविक है।
रमा एकादशी का महत्व
कार्तिक मास में दीपावली से पहले पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं। जो कि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी के नाम पर है। जिन्हें रमा भी कहते हैं। इस पावन एकादशी के बारे में मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने वाले पर भगवान विष्णु की कृपा बरसती है और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है और वह सभी पापों से मुक्त होते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।
कैसे करें एकादशी का व्रत
एकादशी का व्रत करने के लिए हमारे ऋषियों ने पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां और एक मन, इन ग्यारह को नियंत्रण में रखकर, ईश्वर स्मरण करते हुए एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस उपवास को करने वाले व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और तुलसी जी की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए।
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