नई दिल्ली। उत्तराखंड के पहाड़ देश भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग यहां तीर्थ यात्रा के लिए भी आते हैं। दशकों पहले केवल बुजुर्ग लोग तीर्थ यात्रा पर निकलते थे परंतु अब साधन और सुविधाएं बढ़ गए हैं तो नवविवाहित भी आने लगे हैं। आप जब कहीं जाते हैं तो आपकी कोशिश होती है कि आप वहां के कल्चर, खान पान और पहनावे का आनंद ले सकें। यदि आप गढ़वाल आ रहे हैं तो अरसा और रोट जरूर खाएं। यह आपको दीवाना बना देगा। आप अपने दोस्तों के लिए पार्सल कराकर भी ले जा सकते हैं।
ऐसे तैयार होता है अरसा
अरसा बनाने में महिला और पुरुषों की बराबर भागीदारी होती है।
अरसा तैयार करने के लिए गांवभर से महिलाओं को भीगे हुए चावल कूटने के लिए बुलाया जाता है।
चावल की लुगदी बनने के बाद गांव के पुरुष इसे गुड़ की चासनी में मिलाकर मिश्रण तैयार करते हैं।
जायका बढ़ाने के लिए इसमें सौंफ, नारियल का चूरा आदि भी मिलाया जाता है।
इसके बाद छोटी-छोटी लोइयां बनाकर उन्हें तेल या घी में तला जाता है।
कहीं-कहीं अरसों में पाक लगाने की परंपरा भी है।
इसके लिए पके हुए अरसों को गुड़ की चासनी में डुबोया जाता है।
1100 साल पुराना ARASA का HISTORY
इतिहासकारों की मानें तो अरसा बनाने की परंपरा बीते 1100 साल से चली आ रही है। कहते हैं कि जगदगुरु शंकराचार्य द्वारा बदरी-केदार धाम में दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को पूजा का दायित्व सौंपे जाने के बाद नवीं सदी में वहां से आने वाले नंबूदरी ब्राह्मण अरसालु लेकर गढ़वाल आए थे। बाद में अरसालु का अपभ्रंश अरसा हो गया। अरसा लंबे समय तक खराब नहीं होता, इसलिए वह इसे पोटलियों में भरकर लाते थे। उन्होंने ही स्थानीय लोगों को इसके महत्व और बनाने की विधि से परिचित कराया।
Carving रोट कैसे बनता है
रोट बनाने के लिए आटे को गुड़ के पानी और देसी घी में गूंथा जाता है।
आवश्यकतानुसार इसमें नारियल, सौंफ, किशमिश, बादाम आदि भी मिलाए जाते हैं।
इन सबको गूंथने के बाद हाथ से छोटे-छोटे गोले बनाकर इन पर नक्काशीदार ठप्पों से दबाव डाला जाता है।
इसके बाद इन्हें तेल या घी में लाल होने तक तला जाता है।
यह भी महीनों तक खराब नहीं होते।
Restaurants में बन रहे ARASA और ROT
अब राज्य के मैदानी इलाकों में भी अरसा व रोट को बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। रेस्टोरेंट में शेफ इन्हें तैयार कर रहे हैं। साथ ही डिमांड के अनुसार इन्हें एक्सपोर्ट भी किया जा रहा है। शादी-ब्याह के मौके पर तो इनकी अच्छी-खासी डिमांड रहती है। दून में सहस्त्रधारा रोड स्थित काफल रेस्टोरेंट के मोहन लखेड़ा बताते हैं कि दो वर्ष से उनके रेस्टोरेंट में रोट व अरसा तैयार किए जा रहे हैं। जो कि सौ रुपये से लेकर 300 रुपये तक के पैक में उपलब्ध है। इन्हें मेरठ, लखनऊ, चंडीगढ़, लुधियाना, दिल्ली, मुंबई आदि महानगरों में भी भेजा जाता है।