प्रवेश सिंह भदौरिया। 11 दिसंबर 2018 को मध्यप्रदेश में कांग्रेस का राजनीतिक वनवास आखिरकार खत्म ही हो गया।इसी के साथ परंपरा के अनुसार हारे हुए पूर्व विधायक, मंत्री व प्रत्याशी वरिष्ठ नेताओं को अपनी हार का जिम्मेदार मान रहे हैं।सबसे ज्यादा अनुशासनहीनता व बद्तमीजी का स्वर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में है जहां भाजपा को विधायकों की अकड़,प्रत्याशी का अतिआत्मविश्वास ले डूबा फिर भी वे स्वयं के भीतर झांकने की वजाय वरिष्ठ नेताओं पर ही दोषारोपण कर रहे हैं।
कारण नंबर-1: यूपी फार्मूला एमपी में अपनाया गया
सबसे प्रमुख कारण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मध्यप्रदेश को ना समझना रही।मध्यप्रदेश में चुनाव कभी भी हिंदू-मुस्लिम,सवर्ण-दलित के आधार पर नहीं लड़े गये फिर भी विधानसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश फॉर्मूला अपनाया गया।यहां का वोटर हमेशा से सभ्य,सीधा रहा है व उसने हर उस दल को नकारा है जिसने शब्दों के तीखे बाण छोड़े हों।
कारण नंबर-1: सुहास भगत का ठंडा नेतृत्व
दूसरा प्रमुख कारण संगठनात्मक विफलता रही जिसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का सरकार के पीछे खड़ा रहना है जबकि अध्यक्ष का वास्तविक काम संगठन को मजबूती दिलाना रहा है। इसके अलावा कप्तान सिंह सोलंकी व स्व.अनिल माधव दवे जैसे कुशल रणनीतिकार के मुकाबले सुहास भगत सरीखे शांत व ठंडे नेतृत्व का भी भाजपा की हार में योगदान है।
कारण नंबर-3: 'शिवराज के सिपाही' अभियान
एक अन्य कारण जिसे सभी लोग नजरअंदाज कर रहे हैं वो है पार्टी कार्यकर्ता की जगह "व्यक्तिगत" कार्यकर्ता बनाना जिसका परिणाम यह हुआ कि कार्यकर्ता पार्टी के प्रति वफादार ना होकर एक व्यक्ति विशेष की भक्ति में लीन हो गया है। अतः यह कह सकते हैं कि भाजपा इस बार कांग्रेस के तरीके से लड़ी जबकि कांग्रेस भाजपाई तरीके से और लोकसभा चुनाव से पहले इस अनुशासनहीनता पर लगाम नहीं लगाई गयी तो मध्यप्रदेश केंद्र में बहुत नुकसान पहुंचाएगा।