भोपाल। वित्तीय संकट से जूझ रही मप्र सरकार को राहत नहीं मिली है। सरकार को अपनी परिसंपत्तियों की नीलामी से उम्मीद थी कि उसे बाजार से 800 करोड़ रुपए का कर्ज मिल जाएगा, लेकिन बुधवार को जब बोली लगी तो सिर्फ 500 करोड़ रुपए का ही कर्ज मिल पाया। इसका असर प्रदेश की अधूरी सड़कों और सिचाई योजनाओं पर पड़ेगा। बजट की कमी से राज्य सरकार के कर्मचारियों के ईपीएफ अकाउंट में से जो राशि निकली है, उसकी भरपाई में भी मुश्किल होगी। इतना ही नहीं रिजर्व बैंक के अनुसार कर्ज 8.44% की दर से लेना था, लेकिन सरकार ने कर्ज लिया 8.52% की दर से। यानी 0.8% महंगा कर्ज।
500 करोड़ रुपए के कर्ज को मिलाकर प्रदेश सरकार इस वित्तीय वर्ष में 13000 करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। अभी मिले कर्ज में उसे इतनी राहत जरूर मिली है कि यह राशि उसे 25 साल में चुकानी होगी। मप्र समेत अन्य राज्यों में आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, मणिपुर, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और तमिलनाडु ने भी कर्ज लिया है, लेकिन इन राज्यों ने जितना कर्ज मांगा था, उन्हें उतना ही मिला। सिर्फ मध्यप्रदेश का वेल्यूएशन 300 करोड़ रुपए कम किया गया।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में बीते वित्तीय वर्ष के दौरान एक बार वेज एंड मींस की स्थिति निर्मित हो गई थी, जब रिजर्व बैंक में सरकार के 600 करोड़ के रिजर्व फंड में से भी राशि निकाले जाने की नौबत आ गई थी। वित्तमंत्री जयंत मलैया के मुताबिक राज्य सरकार ने जितना कर्ज मांगा था, उससे कम क्यों मिला। इस बात की अधिकारियों से जानकारी ली जाएगी।