एक्जिट पोल कल शाम को आ गए। लोगों को उतना ही कन्फ्यूज किया जितना वोटर्स ने पोलिंग वाले दिन पोलिटिकल पार्टीज को। कोई भाजपा को जीता रहा है कोई कांग्रेस को। कुछ एजेन्सीज का एक्जिट पोल थर्ड फ्रंट वाली पार्टीज को खुश किए हुए है कि बिना उनके सरकार नहीं बन रही क्यूंकि हंग असेंबली के चांसेज हैं। गुस्ताखी माफ, मैं उन लोगों से सहमत नहीं हूं जिन्हें कोई लहर नहीं दिखी। मैं उनसे भी सहमत नहीं जो कहते हैं कि मतदाता चुप था।
Anti-incumbency अगर नहीं होता तो बीजेपी जो 'अबकी बार 200 पार' का नारा पिछले 2 साल में 20000 बार लगा चुकी होगी 116 सीट कैसे आ जाएं उसका गुणा भाग नहीं कर रही होती। मैसेज क्लियर है। राइटिंग ऑन द वाल क्लियर था। बदलाव की बात हर क्षेत्र में थी चाहे विंध्य हो, महाकौशल या मालवा या अन्य क्षेत्र। मालवा और मध्य क्षेत्र को छोड़ दें तो बीजेपी हर जगह पिछड़ती दिख रही है। आश्चर्य नहीं अगर मध्य भी अन्य क्षेत्रों का साथ दे। ऐसे में मालवा भाजपा को कितनी बचा पाती है देखना है क्यूंकि वहां भी कांग्रेस पहले से बहुत बेहतर करती हुई दिख रही है। कारण कई थे।
किसानों की कर्जमाफी कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक था। पर ऐसे में अगर कांग्रेस सरकार नहीं बना पाती है तो दोष ईवीएम का नहीं दोष उसके लेटलतीफी, रणनीति और नेतृत्व को देना चाहिए। और अगर भाजपा सरकार बनाती है तो ये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जीवन की सबसे बड़ी जीत मानी जानी चाहिए जिन्होंने अपने दम पर anti-incumbency को डिफीट किया और एक बार फिर सरकार बनाई।
लेखक श्री रंजन श्रीवास्तव हिंदुस्तान टाइम्स के ब्यूरोचीफ हैं।