भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह करीब 1 साल की कड़ी मेहनत के बाद अपनी छवि बदलने में कामयाब रहे थे। लोग मानने लगे थे कि दिग्विजय सिंह ने संगठन के लिए काम किया और कांग्रेस की सरकार बनवाई लेकिन बेटे जयवर्धन सिंह और भतीजे प्रियवत सिंह को मंत्रीपद दिलाने व जयवर्धन को वित्त विभाग दिलाने की जिद में उनकी काफी किरकिरी हुई। हालात यह बने कि वो अपने ही नजदीकी विधायकों के निशाने पर आ गए।
दिग्विजय बेटे जयवर्द्धन को वित्त दिलवाना चाहते थे। उनकी इस मांग के कारण मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा अटक गया। मामला दिल्ली तक पहुंचा। पहली बार दिग्विजय सिंह के नजदीकी विधायकों ने भी दिल्ली पहुंचकर मंत्रियों के चयन पर सवाल उठाया। हालांकि उन्होंने दिग्विजय सिंह का नाम नहीं लिया लेकिन कांग्रेस में सभी जानते हैं कि वो किस पर उंगली उठा रहे थे। जयवर्धन को वित्त विभाग के नाम पर कई वरिष्ठ नेता अड़ गए। उनका मानना था कि यदि वित्त जैसा विभाग जयवर्द्धन को मिलता तो पर्दे के पीछे दिग्विजय ही होंगे और उनके बेटे का कद कई वरिष्ठ नेताओं से ज्यादा बढ़ सकता है। वो अगली बार सीएम पद का दावेदार हो जाएगा।
मामला राहुल गांधी के पास पहुंचा। उन्होंने अहमद पटेल को इसे सुलझाने को कहा। इधर दिग्विजय सिंह समर्थक विधायकों का विरोध मुखर हो गया। एदल सिंह कंसाना, केपी सिंह और बिसाहूलाल तो दिल्ली जा पहुंचे। एदल सिंह ने अपने साथ 10 विधायकों के इस्तीफे की धमकी दे डाली। दिग्विजय सिंह को बैकफुट पर आना पड़ा और जयवर्धन सिंह को वित्त विभाग नहीं मिल पाया।