देश का भाग्य विधाता नीति आयोग यह तय नहीं कर पा रहा है की वो देश को किधर ले जाये| अगले तीन वर्षों के लिए बनाये गये उसके खाके में कुछ भी निश्चित नहीं है| नीति आयोग एक दस्तावेज जारी किया है जिसमें अगले तीन वर्षों के दौरान देश में नीति निर्माण का खाका है। इस दस्तावेज को 'स्ट्रैटेजी फॉर न्यू इंडिया एट ७५' का नाम दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी भूमिका में कहा कि 'इसे साझा करने का उद्देश्य बहस और परिचर्चा को प्रोत्साहन देना और देश के नीतिगत रुख को आगे और परिष्कृत करने के लिए प्रतिपुष्टि हासिल करना' है। उस दृष्टि से देखें तो यह नीति पत्र काफी हद तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की पिछले चार साल की भाषा बोलता नजर आता है।
इस दस्तावेज में कहा गया है कि फिलहाल भारत 'सबका साथ, सबका विकास' के दर्शन के साथ 'विकासशील अवस्था' में है। इस रुझान के साथ आगे अर्थव्यवस्था को ४१ क्षेत्रों में बांटा गया है। इन्हें भी आगे चार श्रेणियों में बांटा गया है जिन्हें वाहक, आधारभूत, समावेशन और संचालन का नाम दिया गया है। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में उस प्रगति का आकलन किया गया है जो हो चुकी है। इसके अलावा बची हुई चुनौतियों, आने वाली बाधाओं के बारे में बात की गई है। इसका अंत सुधारों की एक सूची के साथ हुआ है जिनकी सहायता से हर क्षेत्र के उल्लिखित लक्ष्य को हासिल किया जाना है।
दस्तावेज का मूल उद्देश्य आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाकर ८ प्रतिशत के स्तर तक पहुंचाने और देश की अर्थव्यवस्था को सन २०३० तक ५ लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात करना है ताकि सबके लिए पर्याप्त रोजगार और समृद्धि हासिल की जा सके। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अर्थव्यवस्था में निवेश की दर को २९ प्रतिशत से बढ़ाकर ३६ प्रतिशत करना है। किसानों को कृषि उद्यमी बनाने, शून्य बजट वाली प्राकृतिक खेती को अपनाने और श्रम कानूनों को संहिताबद्ध करने समेत कई उपायों का उल्लेख किया गया है। दूसरी श्रेणियों में भी ऐसे ही सुझाव दिए गए हैं जो नई बोतल में पुरानी शराब की कहावत चरितार्थ करते हैं। उदाहरण के लिए बुनियादी संरचना के तहत आंतरिक नौवहन को बढ़ावा देने और डिजिटल खाई को पाटने, समावेशन में सस्ते घरों को बढ़ावा देने और शिक्षण में सुधार तथा संचालन के तहत दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसाओं के क्रियान्वयन की बात कही गई है।
नीति आयोग इरादे नेक हैं लेकिन क्या करना है और कैसे करना है यह स्पष्ट नहीं है। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार केंद्र की प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत मंजूर ५५ लाख आवास में से गत सितंबर तक केवल १५ प्रतिशत मकान पूरे हुए थे। इसी प्रकार प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत मार्च २०१९ तक १.०२ करोड़ आवास पूरा करने का लक्ष्य है लेकिन मार्च २०१८ तक केवल ३४ लाख आवास बने। इस दृष्टि से देखें तो यह दस्तावेज लक्ष्य प्राप्ति को लेकर भरोसा पैदा नहीं करता। यह भी स्पष्ट नहीं है कि प्राथमिक विद्यालयों में शैक्षणिक नतीजे कैसे सुधारे जाएंगे। इसी तरह कृषि क्षेत्र की दिक्कतें सब्सिडी से दूर होने की स्थिति में नहीं हैं। दस्तावेज में किसानों की आय दोगुनी करने समेत पुरानी बातें दोहराई गई हैं। उस दृष्टि से देखें तो लक्ष्य विश्वसनीय नहीं नजर आते। यह कल्पना करना मुश्किल है कि सन २०२२-२३ तक 'एक नया भारत' गढऩे के लिए 'आमूलचूल बदलाव' कैसे लाया जाएगा। नीति आयोग सरकार को नीति निर्माण के लिए जरूरी शोध और बौद्धिक सहायता प्रदान करने की स्थिति में है। वह इसे सही मायनों में बदलाव का एक शक्तिशाली कारक बना सकता है, परंतु इससे संबंधित दृष्टि पत्र एक बार फिर कमजोर साबित हुआ है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।