मध्यप्रदेश में 1998 में दिग्विजय सिंह सरकार द्वारा शिक्षाकर्मी के रूप में जो बीज बोया गया था वह वर्तमान में करीब तीन लाख अध्यापकों का वटवृक्ष बनकर खड़ा है। बीस वर्षों से समान कार्य समान वेतनमान ओर मूल शिक्षाविभाग की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे अध्यापको का न तो अब तक मूल शिक्षाविभाग में संविलियन हुआ है न ही प्रदेश के नियमित शिक्षकों की भांति सातवा वेतनमान मिला है।
अब तक राज्य में जितनी भी सरकारें आई है उन्होंने अध्यापकों का भला कम शोषण ज्यादा किया है। प्रदेश में 15 साल बाद फिर कांग्रेस सत्ता में लोटी है तो स्वाभाविक है अपनी जन्मदाता कांग्रेस सरकार से प्रदेश के अध्यापको को अपनी मांगों को पूरा करने का विश्वास है। सत्ता में आने के पूर्व अपने घोषणा पत्र में प्रदेश के अध्यापकों से किये वादों को पूरा करना अब प्रदेश की कांग्रेस सरकार के हाथों में है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ को अपने वायदे के अनुसार प्रदेश के तीन लाख अध्यापकों को मूल शिक्षा विभाग में संविलियन करवाकर अध्यापकों को भी नियमित शिक्षकों की भांति सातवां वेतनमान ओर अन्य सुविधा प्रदान कर अध्यापको के भी संघर्ष का वनवास खत्म करने की कृपा करें।
अरविंद रावल
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