विवेक कुमार पाठक। मप्र विधानसभा चुनाव में मत प्रतिशत क्या बढ़ा कांग्रेस ने इसे अपनी जीत का नगाड़ा मान लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष KAMALNATH की खुशी छिपाए नहीं छिप रही है। उन्होंने बयान दे डाला है कि पहले मैं कह रहा था कि हम 140 जीत रहे हैं मगर मतदान के बाद मैं कहता हूं कि चुनाव परिणाम अप्रत्याशित रहने वाले हैं। उधर मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और 70 साल के कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह भी कांग्रेस की सरकार का मजबूती से दावा कर रहे हैं। उधर वनवासी कांग्रेस के चुनावी अभियान का जिम्मा संभालने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस की सरकार बनने का मजबूती से विश्वास जताया है।
कांग्रेस के सपने को अगर सच मान लें तो फिर किस्सा कुर्सी का शुरु हो जाता है। एक ही सवाल सीएम कुर्सी किसकी। दिखाए जा रहे दो चेहरों में से एक की होगी या फिर प्रचार में अनदेखे किसी तीसरे की। तो आइए खुलकर बात कर ही लें।
मध्यप्रदेश की राजनीति इस समय ठीक ढाई दशक पहले के रास्ते पर संभवत खड़ी होने जा रही है। अगर कांग्रेसियों के ठोस दावे और चुनावी संभावनाओं के मुताबिक कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में वापिसी करती है तो ठीक पुरानी स्थिति होगी केवल पात्र बदले हुए होंगे। जीहां सवाल वही खड़ा होने जा रहा है जो ग्वालियर चंबल अंचल वालों की जुबान पर कभी रहा था।
सवाल है कि मध्यप्रदेश की कुर्सी पर सिंधिया पहुंचेंगे या फिर कोई और। इस बार ढाई दशक पहले वाले स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया मप्र की सत्ता के दरवाजे पर खड़े हैं मगर पिता की तरह उनका रास्ता अधूरा रहेगा या पूरा होगा ये वक्त बताएगा।
इस चर्चा के साथ ही हजारों लोगों के सामने मध्यप्रदेश की राजनीति के पुराने पन्ने जीवंत हो गए होंगे। 80 और 90 के दशक की राजनीति के वे खास लम्हे तब के केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया को नागवार गुजरे होंगे। चुरहट लाटरी कांड 1989 में आने पर जब मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाब बढ़ा एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने माधवराव सिंधिया को मप्र की कुर्सी पर बिठाना तय किया तो चुरहट नरेश अर्जुन सिंह ने राजनीति की अलग बिसात बिछा दी और माधवराव की जगह अपने खेमे के मोतीलाल वोरा को सीएम की कुर्सी तक पहुंचा दिया। यह राजनैतिक उठापटक राजीव गांधी और माधवराव सिंधिया दोनों के लिए अच्छा अनुभव नहीं रही।
माधवराव सिंधिया इस तरह आलाकमान की गुडबुक में होकर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते पहुंचते रह गए थे। खैर कांग्रेस तब सत्ता में आती रही और सिंधिया के समक्ष दूसरा मौका कुछ साल बाद फिर आया मगर कांग्रेस की खेमेबाजी में निपुण राजनीति और कुशल कूटनीति ने बाजी फिर पलट दी।
बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर पटवा सरकार की बर्खास्तगी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस मप्र में बहुमत लेकर आयी और माधवराव सिंधिया का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए फिर प्रबलता से सामने आया।
ऐसे में चुरहट नरेश अर्जुन सिंह की राजनैतिक पैतरेबाजी ने माधवराव को फिर पटखनी दी और अर्जुन सिंह इस बार अपने करीबी तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिग्विजय सिंह को सूबा सदर बनवा ले गए। अर्जुन सिंह इससे पहले भी दिग्विजय सिंह को चुरहट लॉटरी कांड के बाद भी मुख्यमंत्री बनवाना चाहते थे मगर सही समीकरण न बैठने पर उन्हें मोतीलाल वोरा का नाम अपने खेमे से आगे बढ़ाना पढ़ा।
इन दो ऐतिहासिक मौकों पर मध्यप्रदेश की सत्ता से वंचित रहे ग्वालियर चंबल के दिग्गज माधवराव सिंधिया इसके बाद अपने जीवनकाल में मुख्यमंत्री के रुप में तीसरा अवसर नहीं पा सके। निश्चित ही अगर कानपुर में हवाई दुर्घटना में वे अपने प्राण न गवाते तो दिल्ली में वाजपेयी सरकार जाने पर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री का नाम तय करते समय मनमोहन से पहले माधवराव सिंधिया का नाम भी पूरी गंभीरता से अपने मन के पैनल में शामिल करतीं। तब माधवराव सिंधिया लोकसभा में उपनेता के रुप में कांग्रेसी खेमे की प्रमुख आवाज के साथ सोनिया गांधी के विश्वस्त थे।
माधवराव सिंधिया और मध्यप्रदेश मुखिया की कुर्सी के बीच की यह ऐतिहासिक दूरी एक बार फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने घटती बढ़ती दिख रही है। 2018 विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव अभियान समिति प्रमुख के रुप में मध्यप्रदेश कांग्रेस का किला लड़ाया है। 15 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस ने सिंधिया और कमलनाथ की जुगलबंदी के साथ मप्र में वापिसी की जोरदार दम भरी है। मतदान के बाद कांग्रेस के लिए अच्छी उम्मीदें जताई जा रही हैं। ऐसे में 11 तारीख के नतीजों के बाद क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया युवा चेहरे के रुप में मप्र की कमान संभाल पाएंगे ये लाख टके का सवाल है।
सब जानते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव में कांग्रेस का सीएम उम्मीदवार तय न करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ पर कांग्रेस को जिताने का जिम्मा सौंपा था। प्रचार अभियान समिति प्रमुख के नाते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने करीब सवा सौ सभाएं सहित तमाम रोड शो और पूरे मप्र का भ्रमण कर मप्र में खूब पसीना गिराया है। 11 तारीख को अगर कांग्रेस बहुमत की ओर बढ़ती है तो फिर क्या युवा चेहरे के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम की कुर्सी मिलेगी ये अगला सीएम मिलने तक मप्र में उभर रहा काल्पनिक मगर बड़ा सवाल है।
क्या सिंधिया उस दहलीज को पार कर पाएंगे जिसके सामने आने पर उनके पिता माधवराव सिंधिया का राजनैतिक कूटनीति से साक्षात्कार हुआ था। क्या तब कांग्रेस के समकक्ष दिग्गज अर्जुन सिंह ने जो भूमिका माधवराव सिंधिया को मप्र का सूबा सदर न बनने देने में निभाई थी क्या उस भूमिका का ज्योतिरादित्य सिंधिया तोड़ निकाल पाएंगे।
निसंदेह 11 दिसंबर को चुनावी अभियानों में सिंधिया को सुनने वाले उनके प्रशंसक खासकर बदलाव के पैरोकार माने जा रहे तमाम युवा कुर्सी पर भी वक्त बदलाव का देखना चाहते हैं। नए चेहरे के पैरोकार इन युवाओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की आमसभाओं में उन्हें एक उर्जावान नेता के रुप में देखा है। शिवराज के जवाब में सिंधिया की सभाओं में उमड़ी भीड़ की मप्र चुनाव में निश्चित ही चर्चा रही है। कांग्रेस ने आम सभाओं में पूरे प्रदेश में इस युवा चेहरे को आगे रखकर वोट मांगे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के समक्ष युवा मुख्यमंत्री के रुप में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मौका देने की बात तेजी से उठने के आसार हैं तो कमलनाथ के पैरोकार भी कम नहीं पड़ेंगे। बेशक कमलनाथ का दूसरा चेहरा भी कांग्रेस के पास है और कोई शक नहीं कि कमलनाथ वरिष्ठ और अनुभवी हैं और 2018 में कांग्रेस के दूसरे पहिए के रुप में कमलनाथ ने पार्टी संगठन की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई है और संगठन को कम समय में सक्रिय किया है। कांग्रेस के बहुमत लेने के बाद वे और उनके समर्थक शायद सिंधिया से अधिक ताकतवर रुप में सामने आ जाएं। इस संभावना के अपने कारण हैं। कमलनाथ की प्रबंधन कला और दिग्गी राजा सहित कांग्रेस के क्षेत्रीय क्षत्रप उनके अधिक संपर्क और निकट हैं।
लंबे समय से चर्चा है कि मप्र में बहुमत मिलते ही कांग्रेस लगातार सीएम चेहरे के रुप में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम दिखाएगी मगर विधायक दल की बैठक आते आते बहुत कुछ बदलेगा और अंत समय में मप्र कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह सिंधिया विरोधियों को गोलबंद करके अपने अनुकूल कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनबाने में सफल हो जाएंगे। ये पटकथा ऐसे ही नहीं हैं। मप्र में इस संभावना के अपने कारण भी हैं।
टिकट वितरण में जिस कदर दिग्विजय सिंह, अजय सिंह ने सिंधिया को मिले फ्री हैंड में दखल डाला और परोक्ष रुप से कमलनाथ के खाते से अधिक से अधिक टिकट का रास्ता बनाया सबने देखा है। ऐसे में टीवी चैनलों, सोशल मीडिया, अखबारों से लेकर चाय की चौपालों और चौराहों की चर्चा में यह बात मुखर होती दिखती है कि कांग्रेस आने पर वक्त बदलेगा मगर कुछ पुराने दौर को दुहराकर। इस बार राजीव गांधी की जगह राहुल गांधी हैं और माधराव सिंधिया की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया।
जैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी युवा चेहरे के रुप में चाहकर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव से पहले सीएम प्रोजेक्ट नहीं कर सके वैसे ही मप्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के युवा चेहरे को दिखाने पर भी वे दिग्गीराजा की कूटनीति से आगे बढ़कर मप्र को युवा मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाएंगे। सत्ता की चाबी इस बार राहुल गांधी से कहीं अधिक दिग्गी राजा के हाथ में बताई जा रही है। खैर इस तरह की तमाम चर्चाएं मतदान के बाद से निरंतर जारी हैं और ज्योतिरादित्य और कमलनाथ से लेकर तीसरे अनदेखे नाम को लेकर दिन रात भांति भांति के दावे हो रहे हैं।
इस बीच एक बड़ा सवाल है कि वक्त है बदलाव नारे वाली कांग्रेस में माधवराव सिंधिया के समय वाली कूटनीति की परपाटी कितनी बदलती है। फिलहाल जनता इन्हीं सब चर्चाओं के बीच राहुल गांधी के आगामी निर्णय पर अभी से टकटकी लगाकर बैठ गई है।