भोपाल। विधानसभा चुनाव 2018 में शिवराज सिंह ने खुलकर मनमानी की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा टोके जाने के बावजूद उसके सुझावों पर ध्यान नहीं दिया। जिसे चाहा टिकट दिया। सर्वे, फीडबैक, दूसरे बड़े नेता, पार्टी कार्यकर्ताओं की राशुमारी किसी का ध्यान नहीं रखा। पूरे चुनाव में 'हमारा नेता शिवराज' पर फोकस किया। खुद को भाजपा से बड़ा बताने की कोशिश की। भाषणों में 'हम' की जगह 'मैं' का उपयोग किया। अब चुनाव बाद केवल एक विधायक होने के बावजूद पार्टी की फ्रंड लाइन पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इससे नाराज है। वो चाहता है कि मध्यप्रदेश में तत्काल प्रभाव से भाजपा का अनुशासन और संगठन दिखाई दे। वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेंद्र शर्मा की नवभारत टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट भी यही बता रही है।
RSS चाहता है नरोत्तम मिश्रा या गोपाल भार्गव बने नेता प्रतिपक्ष
राज्य के पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन समेत बीजेपी नेताओं का एक तबका मानता है कि 15वीं विधानसभा में शिवराज सिंह को नेता विपक्ष बनाया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर आरएसएस और वरिष्ठ नेता इस पद के लिए नरोत्तम मिश्रा या गोपाल भार्गव जैसे किसी नेता को यह जिम्मेदारी दिए जाने के इच्छुक बताए जाते हैं।
शिवराज सिंह से भाजपाई भी नाराज थे
आरएसएस सूत्रों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व से कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग संतुष्ट नहीं था, इसी वजह से बीजेपी ने चुनाव में खराब प्रदर्शन किया। जमीनी कार्यकर्ताओं ने इसी के चलते पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए लोगों के पास जाने की जहमत नहीं उठाई।
ब्राह्मण को बढ़ाने से उच्च जातियों की नाराजगी कम होगी
यह भी माना जा रहा है कि किसी ब्राह्मण नेता को विपक्ष का नेता बनाए जाने पर उच्च जाति के वोटरों में पार्टी के प्रति नाराजगी कम होगी, जिन्होंने चुनाव के दौरान बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। सूत्रों का कहना है कि संघ परिवार अब लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर जोर दे रहा है। चुनाव में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के लिए आरएसएस चाहता है कि राज्य का नेतृत्व वोटरों से बेहतर जुड़ाव की दिशा में फोकस करते हुए ज्यादा सक्रिय हो।
शिवराज सिंह के कारण लोकसभा भी प्रभावित हो सकते हैं
आरएसएस ने राज्य के संसदीय क्षेत्रों में वर्तमान सांसदों के कामकाज और जनता के बीच उपलब्धता को लेकर फीडबैक इकट्ठा किया है। सूत्रों के मुताबिक ऐसे हालात में शिवराज सिंह चौहान की भूमिका नेता विपक्ष के बजाए इस संदर्भ में अहम होगी। बता दें कि मध्य प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांटे के मुकाबले में बीजेपी को शिकस्त देकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है। कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 और बीजेपी को 109 सीटें हासिल हुईं। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राज्य की 29 में से 27 सीटों पर कब्जा किया था।