उपदेश अवस्थी। मेहंसाणा बॉम्बे, अब गुजरात के नरेंद्र मोदी की कथाएं अक्सर सुनाईं जातीं हैं। इन दिनों देश में एक बार फिर राम मंदिर का मुद्दा जोरशोर से उठाया जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता मोदी की ना केवल प्रशंसा करता है परंतु वो करोड़ों लोगों के आदर्श भी हैं। मैं यहां एक महत्वपूर्ण बात जोड़ना चाहता हूं कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी नरेंद्र मोदी को लेकर काफी सवाल करते हैं। मेरे पास कई सवालों के जवाब होते हैं परंतु 1 सवाल पर मैं भी अटक गया। सवाल है 'नरेंद्र मोदी 06 दिसम्बर 1992 को कहां था, राम मंदिर आंदोलन में उनकी क्या भूमिका थी।' प्रश्नकर्ता के शब्द अलग थे, मैने समझने की दृष्टि से इसे संयोजित कर दिया।
मुझे लगता है कि यह प्रश्न और भी कई लोगों के हृदय में होगा कि राम मंदिर आंदोलन में हमारे आदर्श श्री नरेंद्र भाई मोदी का क्या योगदान रहा। 18 दिन से इस सवाल का जवाब तलाश रहा हूं। कुछ खास प्रमाणित उत्तर नहीं मिल रहा है। कुछ जानकारियां हाथ लगीं हैं। आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूूं:
1947 में पुणे के लक्ष्मण राव इनामदार को संघ कार्य के लिए गुजरात भेजा गया।
1958 में प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार की उपस्थिति में लगी बडनगर शाखा में 08 वर्षीय बाल स्वयंसेवक नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी थे। यानी वो 1958 ये पहले से ही संघ से जुड़ गए थे।
1964 में वो अहमदाबाद आए और अपने चाचा के साथ कैंटीन का काम करने लगे।
लक्ष्मण राव इनामदार अब प्रांत प्रचारक बन चुके थे। उन्होंने नरेंद्र मोदी को फिर से संघ का काम करने के लिए बुला लिया।
1974 में गुजरात के छात्र आन्दोलन के बाद नरेंद्र मोदी को विद्यार्थी परिषद में सक्रिय कर दिया गया।
दिसंबर 1986 में नरेंद्र मोदी की नई जिम्मेदारी तय हुई, संघ के विविध संगठनों के समन्वय का काम। यहाँ से ही नरेंद्र मोदी राजनीति के सीधे संपर्क में आये।
1982 से ही आरक्षण के नाम पर हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं तथा तनाव फ़ैलने लगा था। ऐसे अफरातफरी के दौर में 1986 में नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी का गुजरात में संगठन मंत्री नियुक्त किया गया।
उस समय गुजरात भारतीय जनता के दो कद्दावर नेता थे – केशूभाई पटेल और शंकर सिंह बाघेला।
नरेंद्र मोदी को केशूभाई पटेल का नजदीकी कहा जाता था जबकि शंकर सिंह बाघेला मोदी को कतई पसंद नहीं करते थे।
1990 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी बहुचर्चित सोमनाथ यात्रा निकाली। नरेंद्र मोदी इसके इंचार्ज थे।
1991 में नरेंद्र मोदी भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की कश्मीर से कन्याकुमारी तक “एकता यात्रा” के संयोजक थे।
यात्रा के बाद वे गुजरात वापस लौटे, किन्तु उसके बाद शंकर सिंह बाघेला के साथ उनके मतभेद बढ़ने लगे।
इसके बाद नरेंद्र मोदी के बारे में कहीं कुछ भी लिखा हुआ नहीं मिलता।
कहीं किसी के बयानों में भी नरेंद्र मोदी का जिक्र नहीं मिलता।
उस समय आरएसएस के प्रचारक रहे एक वरिष्ठ नागरिक ने नाम ना छापने का आग्रह करते हुए बताया कि 06 दिसम्बर 1992 नरेंद्र मोदी अयोध्या मेें नहीं थे।
वो उत्तरांचल में थे जिसे अब उत्तराखंड कहा जाता है। 06 दिसम्बर 1992 की घटना के बाद उन्हे दिल्ली बुलाया गया था। वो आए या नहीं, इसका पता नहीं है।
संघ के इतिहास को संकलित कर रहे वरिष्ठ स्वयं सेवक श्री हरिहर निवास शर्मा ने बताया कि 1991 की यात्रा के बाद 1995 में गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में श्री नरेंद्र मोदी का जिक्र आता है। 1995 में विधानसभा के चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी ने 182 में से 121 सीटें जीतीं। केशूभाई पटेल मुख्यमंत्री बने। इसके बाद शंकर सिंह बाघेला ने नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर भिजवा दिया। गुजरात के तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष काशीराम राणा, मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल भी नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर भेजने के प्रस्ताव पर सहमत थे। अतः नरेंद्र मोदी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर दिल्ली बुला लिया गया तथा चार राज्यों का प्रभार भी सोंपा गया – जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और हरियाणा। और आगे की कहानी तो सभी जानते हैं कि संजय जोशी गुजरात के संगठन मंत्री बने और 2001 में गुजरात के पहली बार मुख्यमंत्री बने नरेंद्र दामोदर दास मोदी। एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2014 में वो भारत के प्रधानमंत्री बने।