नई दिल्ली। इस साल के जाने और और नया साल आने में अभी २० दिन हैं. मोदी सरकार को तोहफे मिलने लगे हैं | उर्जित पटेल का कल हुआ इस्तीफा यूँ तो बहुत कुछ कहता है, पर इस बात की चेतावनी भी देता है संभलिये, देश की लोकतान्त्रिक संस्थाए नष्ट हो रही है | जनवरी २०१८ में सुप्रीम कोर्ट के जजों को न्यायपालिका संकट में दिखी थी तो नवंबर में सी बी आई और दिसम्बर में उर्जित पटेल के इस्तीफे से पैदा धमाका साफ़ कहता है देश में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा सरकार में कहीं भारी गडबड है।
मशहूर लेखक प्रेमचन्द की एक कहानी है “पंच-परमेश्वर” इस कहानी में एक कथन है “ क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?”। देश की सर्वोच्च संस्थाओं पर बैठे कुछ लोगों के भीतर ईमान जाग रहा है| भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा देकर उन चर्चाओं को साबित कर दिया कि इस संस्थान की गरिमा को और दांव पर नहीं लगाया जा सकता हैं। सवाल यह है कि किसके इशारे पर या शौक के लिए भारत की इन तमाम संस्थाओं की साख को दांव पर लगाया जा रहा है| कुछ लोगों की गिनती हमेशा सरकार के दबाव में काम करने वालों में होती है, उर्जित पटेल भी उनमें शामिल “यस मैन” तौर पर ही देखे गए|अचानक वे यह लड़ाई स्वायत्तता को दांव पर लगाने की है, लड़ने लगे और इस्तीफे का वार कर डाला |कहने को निजी कारणों से तुरंत ही अपने मौजूदा पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला लिया है।
ऐसे ही निजी कारणों से मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम भी इस्तीफा दे गए है और निजी कारणों से उर्जित पटेल भी| वैसे यह विवाद नवंबर के महीने में सामने आया कि सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक के पास जो ३ लाख ६० हज़ार करोड़ का रिज़र्व है वो दे दे| आखिर सरकार को क्यों ज़रूरत पड़ी कि वो रिज़र्व खज़ाने से पैसा ले जबकि वह दावा करती रहती है कि आयकर और जीएसटी के कारण आमदनी काफी बढ़ गई है|रिज़र्व बैंक अपने सरप्लस का एक साल में ५०,००० करोड़ के आसपास देता ही है |लेकिन 3 लाख 60 हज़ार करोड़ देने के नाम से रिज़र्व बैंक के कदम ठिठक गए. रिज़र्व बैंक अपनी पूंजी उन बैंकों को नहीं देना चाहता था जिनके पास लोन देने के लिए पूंजी नहीं है| जिनका एनपीए अनुपात से कहीं ज्यादा हो चुका है| 20 नवंबर की रिजर्व बैंक के बोर्ड बैठक को लेकर ही चर्चा थी कि उर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे मगर ऐसा नहीं हुआ| तब लगा था कि सब सुलझ गया है | मगर कोई कब तक बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहता और उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया| यह सामान्य खबर नहीं है| पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि 'आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा इस्तीफा एक गंभीर चिंता का विषय है| एक सरकारी कर्मचारी द्वारा इस्तीफ़ा देना विरोध का प्रतीक होता है| पूरे देश को इसे लेकर चिन्तित होना चाहिए और यह साफ होना चाहिए कि क्या उर्जित पटेल का इस्तीफा विरोध का प्रतीक है तो उसके क्या मायने हैं?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।