भोपाल। मप्र राज्य सूचना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट व आयोग के स्पष्ट आदेश (Supreme Court and Commission order ) के बावजूद परीक्षार्थियों को उनकी उत्तरपुस्तिका की सत्यप्रति देने से इंकार करने पर सख्त नाराजगी जताई है और विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति व कुलसचिव को फिर से कड़ी फटकार लगाते हुए उनसे स्पष्टीकरण तलब किया है। साथ ही उन्हें निर्देषित किया है कि 10 दिसंबर को आयोग की कोर्ट में उपस्थित होकर अपनी सफाई पेश करें।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पत्रकार कैलाष सनोलिया व अन्य परीक्षार्थियों की शिकायतों पर कुलपति व कुलसचिव को जारी कारण बताओ ( SCN ) नोटिस पर कुलपति व कुलसचिव द्वारा पेष किए उत्तर को अमान्य करते हुए एससीएन पर निर्णय सुरक्षित रखा है। साथ ही तत्कालीन कुलसचिव डा0 परीक्षित सिंह के विरूध्द भी एससीएन जारी करते हुए उन्हें 10 दिसंबर को आयोग के समक्ष पेश होने का निर्देष दिया है।
आयुक्त ने आदेष में कहा है कि तितिक्षा शुक्ला की अपील पर पारित आदेष दि. 27/03/18 में उत्तरपुस्तिका की प्रति प्रदाय करने के संबंध में आयोग द्वारा वि.वि. के समक्ष समूची विधिक स्थिति स्पष्ट की जा चुकी है । इसके बाद भी वि.वि. द्वारा अनेक परीक्षार्थियों को उनकी उत्तरपुस्तिका की प्रति देने से इंकार किया गया है। इस विधिविरूध्द कृत्य के लिए कुलपति की परिनिंदा करने का कड़ा कदम उठाते हुए उन्हें चेतावनी दी गई है आयोग के आदेष में उल्लेखित निर्णयों का सम्मान करते हुए भविष्य में किसी भी परीक्षार्थी को उसकी मूल्यांकित उत्तरपुस्तिका की सत्यप्रति देने से इंकार करने की वैधानिक त्रुटि हरगिज न करें तथा परिक्षार्थियों को उनकी उत्तरपुस्तिका की सत्यप्रति प्रदाय करने हेतु लोक सूचना अधिकारी को सुस्पष्ट निर्देष जारी करें और इस संबंध में कृत कार्यवाही से आयोग को यथाशीघ्र अवगत कराएं अन्यथा स्थिति में उनके विरूद्ध धारा 20 (2) के तहत दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी।
आयुक्त आत्मदीप ने आदेष में कहा है कि विधि व न्याय, मानवाधिकार एवं प्राकृतिक न्याय की दृष्टि से कुलपति का यह तर्क कतई मान्य किए जाने योग्य नहीं है कि वि.वि. समन्वय समिति द्वारा उत्तरपुस्तिका की प्रति प्रदाय न करने का निर्णय लिए जाने के कारण उत्तरपुस्तिका की प्रति प्रदाय करने में कठिनाई है। वि.वि. की तमाम दलीलों को विधि से असंगत होने के आधार पर खारिज करते हुए आदेष में कहा गया है कि मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केन्द्रीय माध्यमिक षिक्षा मंडल बनाम आदित्य बंदोपाध्याय मामले में सुस्पष्ट आदेष पारित किया जा चुका है कि परीक्षार्थी को अपनी मूल्यांकित उत्तरपुस्तिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार है । समन्वय समिति के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेष सर्वोपरि प्रभाव रखता है।
इसी प्रकार सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 22 के अनुसार इस अधिनियम के प्रावधान सर्वोपरि (ओवरराईडिंग) प्रभाव रखते हैं। इसका आषय यह है कि यदि अन्य किसी कानून/नियम/प्रावधान/निर्णय में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से विसंगति रखने वाला कोई प्रावधान है तो ऐसा असंगत प्रावधान मान्य नहीं होगा और उसके स्थान पर सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान मान्य होंगे । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी उक्त आदेष में स्पष्ट किया जा चुका है कि सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 22 के अनुसार, अधिनियम के प्रावधान सर्वोपरि होने से, परीक्षा लेने वाले निकाय इस बात से आबद्ध हैं कि वे अपने नियमों/विनियमों में विपरीत प्रावधान होने के बावजूद, परीक्षार्थी को उत्तरपुस्तिका का निरीक्षण करने दें और चाहे जाने पर उसकी प्रति प्रदान करें।
अधिनियम के प्रावधानानुसार मूल्यांकित उत्तर पुस्तिका परीक्षक की राय का दस्तावेज है जो धारा 2 के तहत ‘सूचना’ की परिभाषा के अंतर्गत आता है। नागरिकों को लोक प्राधिकारी के नियंत्रण या अधिकार में रखी ऐसी सभी सूचनाओं को पाने का अधिकार है। केन्द्रीय सूचना आयोग व विभिन्न राज्य सूचना आयोगों द्वारा पारित निर्णयों में भी अपनी उत्तरपुस्तिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के परीक्षार्थी के मौलिक अधिकार की पुष्टि की जा चुकी हैं । उक्त विधिक स्थिति से यह सुस्पष्ट है कि उत्तरपुस्तिका की प्रति प्रदाय करने से किसी भी अन्य निर्णय के आधार पर इंकार नहीं किया जा सकता है । इसके बावजूद वि.वि. द्वारा इंकार किए जाने के कारण कुलपति, कुलसचिव व तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी को 6 बिंदुओं पर स्पष्टीकरण पेष करने का आदेश देते हुए उनके विरूद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने की चेतावनी दी गई है।