2 अप्रैल दंगों में फंसे रेलयात्रियों को खाना खिलाने वाले बच्चों को नेशनल चिल्ड्रन अवार्ड | MP NEWS

शिवपुरी। मुरैना निवासी अक्षत गोयल और श्रीमति शिखा गोयल की सुपुत्री 10 साल की बालिका आद्रिका और 13 साल के उसके बड़े भाई कार्तिक को बहादुरी के लिए नेशनल चिल्ड्रन अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह दुर्लभ उपलब्धि दोनों भाई बहन को इसलिए मिली है क्योंकि उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना कर्फ्यूग्रस्त मुरैना के रेलवे स्टेशन पर फंसे हुए रेल यात्रियों को खाना खिलाया और एक तरह से उन्हें जीवनदान दिया। इसके पूर्व भी दोनों भाईयों को रक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री और बॉलीवुड के फिल्मी कलाकार सम्मानित कर चुके हैं तथा नेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी उनका नाम आ चुका है। 

यह पूरा वाक्या 2 अप्रैल 2018 का है जब SCST Act के विरोध में पूरे भारत में बंद का आयोजन था और सबसे अधिक आग मुरैना में लगी हुई थी। उपद्रवकारियों की भीड़ हाहाकार मचा रही थी। पथराव और आगजनी की घटनाएं हो रहीं थी और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस द्वारा गोलियां चलाई जा रही थी। एससीएसटी एक्ट का देश भर में सबसे अधिक उग्र विरोध मुरैना में हो रहा था। मुरैना रेलवे स्टेशन पर दो अप्रैल को हिंसक भीड़ ने छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को अपने कब्जे मेें ले लिया था और रेल की पटरी उखाड़ दिए जाने के कारण छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस 6 घंटे से अधिक समय तक मुरैना स्टेशन पर पड़ी हुई थी। स्टेशन पर दंगाईयों का कब्जा था और रेल यात्री सीट के नीचे छुपे हुए थे। रेल के दरवाजे उन्होंने बंद करके रखे हुए थे। मीडिया के जरिए जब यह बात लोगों तक पहुंची और स्टेशन के पास रहने वाले अक्षत गोयल की पुत्री आद्रिका और कार्तिक को यह बात पता चली तो अचानक दोनों भाई बहनों में मानवीय संवेदना जागी। 

उनके कोमल मन ने सोचा कि कैसे भूख में छोटे-छोटे बच्चे रेल में तड़प रहे होंगे और यह भावना जब प्रबल हुई तो दोनों भाई बहन ने बैगों में घर में रखा खाने का सामान भरा। केक, बिस्कुट, ब्रेड, रोटियां, सब्जी आदि थेले में रखा और जान की परवाह किए बिना घर से निकल दिए। वहां मौजूद पुलिस वालों ने उन्हें रोका लेकिन वह अनुनय विनय करके वहां से रवाना हुए। रेलवे स्टेशन पर पत्रकारों ने उनसे कहा कि वह घर चले जाए लेकिन बच्चे नहीं माने और किसी तरह से उन्होंने रेल यात्रियों से दरवाजा खुलवाया तथा अपने पास मौजूद जो भी थोड़ा बहुत खाने का सामान था उन्हें दिया। इसी बीच उनके पिता अक्षत वहां आ गए। 

उन्हें पता चला था कि बच्चे रेलवे स्टेशन पर चले गए हैं। जहां स्थिति विस्फोटक है। पिता ने पहले तो उन्हें डांटा लेकिन जब मासूमों ने पिता से अनुनय विनय की तथा रेल यात्रियों की जान बचाने को कहा तो उनका मन भी पिघल गया। बच्चों ने कहा कि पापा आप घर जाओ और जो भी खाने का सामान हो लेकर आओ और फिर कम से कम 100-200 रेल यात्रियों को दोनों बच्चों ने खाना खिलाया। दोनों बच्चों का यह योगदान स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। खास बात यह है कि दोनों बहादुर भाई बहन सत्य पताका के प्रधान संपादक ललित मोहन गोयल के भांजे और भांजी हैं। 

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