भोपाल। मध्यप्रदेश के तमाम सरकारी महकमों में काम कर रहे सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों में से 2733 ऐसे हैं जो फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करके काम कर रहे हैं। यानी 2733 ऐसी सीटों पर सामान्य वर्ग का कब्जा है जहां आरक्षित वर्ग के व्यक्ति को होना चाहिए था। मजेदार बात यह है कि इसका खुलासा 2015 में ही हो गया था परंतु दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं ने उफ तक नहीं की। मप्र का इतिहास बोलता है कि वरिष्ठ अफसर ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई करते ही नहीं। हालात यह हैं कि इनमें से कई तो रिटायर भी हो गए।
कमलनाथ सरकार के गृहमंत्र बाला बच्चन ने इन अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई के संकेत दिए हैं। बताया जा रहा है कि कानूनी दांव-पेज की वजह से लंबे समय से इन लोगों पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। भाजपा शासनकाल में विधायक सत्यपाल सिंह सकवार ने इस बारे में एक प्रश्न पूछा था। शिवराज सरकार में आदिम जाति कल्याण मंत्री ज्ञान सिंह ने विधानसभा में इसका जवाब दिया था कि प्रदेश में 105 अफसरों ने जाली जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल की है। उनके ख़िलाफ मिली शिकायतों के आधार पर प्रकरण दर्ज कर जांच की जा रही है। इनमें डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी से लेकर तमाम अफसर शामिल हैं।
प्रदेशभर में 2 लाख 48 हजार 668 लोगों ने डिजिटल जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आवेदन किया था। जांच के बाद उनमें से 13 हजार 414 आवेदन निरस्त कर दिए गए थे और 12 हजार 494 जाति प्रमाण पत्रों के रिकॉर्ड ही नहीं मिल पा रहे हैं। ज़ाहिर है ये जाति प्रमाण पत्र जाली हैं। भोपाल में अब तक 2 हजार 733 जाति प्रमाण पत्र जाली पाए गए हैं। छानबीन समिति ने साल 1998 से लेकर 2015 तक 378 प्रकरणों की जांच की थी। उनमें से ज़्यादातर जाति प्रमाण पत्र जाली निकले थे। फिर ऐसे अधिकारी और कर्मचारी आज तक ठप्पे से नौकरी कर रहे हैं।